
आप देश के ज्यादातर राजनीतिक दलों के प्रमुखों या उनके नेताओं के बयान सुन लीजिये सभी को किसी न किसा वर्ग, किसी न किसी सम्प्रदाय की चिंता है। खासकर मुसलमानों के तो सब हितैशी हैं।
मुलायम सिंह को यह मालूम है कि मुसलमानों की स्थिति दयनीय है मगर प्रदेशवासियों की क्या स्थिति है यह नहीं मालूम। अखिलेश यादव को यह मालूम है कि मुस्लिम बालिकायें गरीबी झेल रहीं हैं मगर यह नहीं मालूम कि प्रदेश की बालिकाओं की क्या स्थिति है?
मुझे यह समझ नहीं आता कि अखिलेश यादव ‘‘उत्तर प्रदेश’’ के मुख्यमंत्री है या ‘‘मुसलमानों’’ अथवा किसी विशेष जाति सम्पद्राय के मुख्यमंत्री हैं। ’’दलितों से भी दयनीय स्थिति में हैं मुसलमान’’ यह कहने की बजाय मुलायम सिंह यह क्यों नहीं स्वीकारते, यह क्यों नहीं कहते कि प्रदेश वासियों की स्थिति दयनीय है? और यदि है तो उसके लिये वह कर क्या रहे हैं।
लाल किले से देश को संबोधित करते हुये हमारे प्रधानमंत्री कहते हैं कि हमने मुसलमानों के लिये यह किया है, दलितों के लिये यह किया है, जाटों के लिये यह किया है.................लेकिन यह क्यों नहीं कहते कि हमने भारतीयों के लिये यह किया है। वह कहते हैं कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है! तो भारतीयों का कोई हक नहीं है???? प्रधानमंत्री जी आप भारत के प्रधानमंत्री है मुसलमानों के नहीं।
किसी खास सम्प्रदाय, जाति, धर्म को दयनीय कैसे बताया जा सकता है? क्या सभी मुसलमान दयनीय है? क्या सभी दलित दयनीय है? क्या गरीबी यह देखकर आती है कि कोई मुसलमान है या दलित?
क्या मुलायम सिंह बतायेंगे कि आजम खां, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, सलमान खुर्शीद, फारूक अब्दुल्ला, औवैसी और न जाने कितने और ........................दयनीय हैं.........या यह मुसलमान नहीं हैं?
दलितों की स्थिति दयनीय बताने वाली मायावतीं क्या यह बतायेंगीं कि वह कितनी दयनीय हैं या तमाम प्रशासनिक और उच्च पदों पर बैठे दलित कितने दयनीय हैं?
नेतागण किसी जाति सम्प्रदाय या धर्म को दयनीय क्यों बताते हैं और इसका क्या आधार है? दयनीय होने या गरीबी होने
की स्थिति क्या किसी खास जाति धर्म की ही होती हैं।
गरीब तो कोई भी हो सकता है, किसी भी जाति का हो सकता है, किसी भी धर्म का हो सकता है। मैने मुसलमानों के लिये यह किया, दलितों के लिये यह किया.....यह सब कहने की बजाय यह क्यों नहीं कहते कि मैने अपने देशवासियों के लिये यह किया, अपने प्रदेश वासियों के लिये यह किया।
मुसलमानों की स्थिति बताने के बजाय प्रदेश वासियों की स्थिति पर गौर क्यों नहीं करते? या मुसलमान देश/प्रदेश के वासी नहीं हैं? या नेताओं को लगता है कि प्रदेश वासी कहने से मुसलमान उनसे प्रसन्न नहीं होंगे। यदि यही सोच है तो चुनाव में प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार या देश के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार किस मुंह से कहते हैं? क्यों नहीं कहते कि मैं मुसलमानों के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार हूं। मैं मुसलमानों के मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार हूं।
मुलायम सिंह जिंदाबाद के नारे लगाने वाले और उनकी पार्टी की सभाओं में झंडे लगाने से लेकर दरी बिछाने तक के काम करने वाला एक कार्यकर्ता जो मजदूरी करके गुजारा करता है, वह कई सालों से पार्टी की निस्वार्थ सेवा करता रहा है। आज भी जहां था वहीं है लेकिन उसी के पड़ोस का एक मुसलमान देखते-देखते कोठी और कारों का मालिक बन गया?? लेकिन उसके नेता जी के लिये मुसलमान दयनीय हैं !!!!!!
आज पूरे देश की स्थिति दयनीय है, सभी हिन्दुस्तानियों की स्थिति दयनीय है, हमारी आर्थिक स्थिति की हालत दयनीय है, हमारी राजनीतिक स्थिति दयनीय है, हमारे नेताओं की मानसिक स्थिति दयनीय है, बेराजगारी से परेशान युवाओं की हालत दयनीय हैं, अपराधों से त्रस्त प्रदेश और देश की जनता की हालत दयनीय हैं।
लेकिन नेता जी सिर्फ मुसलमानों की हालत दयनीय दिखायी देती है।
नेता जी आपकी अन्र्तआत्मा जानती है कि आप जो कह रहे हैं, कर रहे हैं वह गलत हैं। चाहे कांग्रेस हो, सपा हो, बसपा हो या कोई अन्य पार्टी सिर्फ मुसलमानों या दलितों से नहीं बनती। यह सब जानते हैं, लेकिन कुर्सी का लालच है!!!
भारतीयों की स्थिति देखों, प्रदेश वासियों की स्थिति देखो और किसी धर्म, सम्प्रदाय की बात करने के बजाय देश और प्रदेश की बात करो।
सुधर जाओं नेताओं क्यों कि तुम्हारें कर्मों/कुकर्मों से यदि देश ही न बचा तो राजनीति कहां करोगे?????
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