बुधवार, 23 मार्च 2011

कवि महोदय


मारे शहर में एक कवि महोदय है, वैसे एक नहीं अनेक हैं। लेकिन वह अपने आप में कुछ खास ही हैं, जिनकी महिमा का गुणगान मैं यहाँ करने जा रहा हूँ। जिसे भी उनसे एक बार मिलने का सुअवसर मिलता है धन्य-धन्य हो जाता है, क्यों कि धन्य होने के सिवाय उसके पास कोई चारा ही नहीं रहता। लोग उनसे बचकर निकलते हैं, कभी-कभी कोई फंसता है, फिर भला उसे बिना कविता सुनायें कैसे जाने दें। अब चाहे आपसे उनकी भेंट बीच सड़क पर ही क्यों न हो, कवि हैं तो कविता तो सुनायेंगे ही।
वैसे मुझे शेर से नहीं, शियार से नहीं, गोली से नहीं, बारूद से नहीं मतलब दुनियाँ में डरने वाली किसी भी वस्तु या प्राणी से यानि कि चूहे और काक्रोच तक से डर नहीं लगता। लेकिन कवि नाम के जन्तु से मैं बेहद घबराता हूँ। परन्तु दुःख इस बात का है कि अक्सर इस खतरनाक जन्तु से टकराता हूँ। अभी उस दुर्घटना को भूला ही कहाँ हूँ, ख्यालों के घोड़े पर सवार मैं कहीं जा रहा था। सहसा किसी ने घोड़े को लगाम लगाई। सामने देखा तो दुनियाँ की सर्वाधिक खतरनाक प्रजाति कवि की सूरत नजर आयी। मन किया सरपट भागूँ, मगर भागता कैसे ? उस विशालकाय आकृति ने मेरा बाजू बड़े प्यार से पकड़ रखा था। खैर! कोई बात नहीं, उन्होंने मेरा हाल पूछा अब हाल क्या बताता? हाल तो उन्हें देखते ही बेहाल हो चुका था। लेकिन उन्होंने मेरे चेहरे पर उभर आयी जबरदस्ती की मुस्कराहट को देखकर स्वयं ही अंदाजा लगा लिया कि मेरा हाल अच्छा ही है। लगे हाथ बिना पूछे ही उन्होंने अपना हाल भी बता डाला। 
हाल बताते-बताते उन्हें याद आ गई अपनी एक कविता की पंक्तियां और फिर कवितागान का अनवरत सिलसिला शुरू हो गया। कुछ ही देर में वहाँ बच्चों व राह चलते लोगों की भीड़ जमा हो गयी। मै नहीं बता सकता कि वह ध्यानमग्न होकर उनकी कविता सुन रहे थे या फिर मेरी दयनीय दशा पर हँस रहे थे। कुछ राह चलते लोग हमारी ओर देखते और मुस्कराकर निकल जाते। कविता पाठ करते-करते वह बड़े ही मस्त हो गये और मेरा बाजू छोड़ दिया। मैं पिंजरे से छूटे पंछी की भाँति उड़ निकला। दूसरे दिन कुछ जानने वालों के माध्यम से पता चला कि मेरे वहाँ से भागने के दो घंटे बाद तक वह अनवरत कविता पाठ करते रहे। जब ब्रेक लिया और मुझे वहाँ नहीं पाया तो बाकी की कवितायें किसी और निरीह प्राणी की तबियत दुरूस्त करने के लिये सुरक्षित कर वहाँ से चल दिये।


पिछले वर्ष सुनने को मिला कि उन्हें एक सर्प ने डस लिया है, जहर निष्क्रिय करने का इंजेक्शन तो डॉक्टर ने लगा दिया था। मगर उसने यह भी ताकीद की थी कि मरीज को रात में सोने न दिया जाये अन्यथा खतरा हो सकता है। कवि महोदय को जगाने का इंतजाम किया ‘‘ढाक’’ (थाली, ढोलक, मंजीरा आदि बजाकर सांप का जहर उतारने की विशेष कला) बजाने वालों ने।
उन्होंने ढाक बजानी शुरू कर दी, अचानक कवि महोदय को ढाक के देशी संगीत की धुन अपनी एक कविता से मेल खाती लगी। उन्होने ने अपनी कविता ढाक के संगीत के साथ गानी प्रारम्भ कर दी। सुबह जब इस शहर के लोगों के साथ-साथ मुझे भी इस घटना बारे में पता चला तो बड़ी सावधानी पूर्वक वहाँ पहुँचा। मगर नजारा अजीब था! कवि महोदय तेज स्वर में कविता पाठ कर रहे थे और ढाक बजाने वाले छहों व्यक्ति वहीं लुढ़के पड़े थे।
कवि महोदय की शादी का किस्सा भी कम रोचक नहीं है। न जाने कितनी कोशिषें की मगर कोई लड़की कवि लड़के से शादी करने को हर्गिज तैयार न थी। जैसे-तैसे उनके माता-पिता ने उनकी शादी दूर के एक शहर से तय कर दी। शायद लड़की को पता नहीं चल पाया था कि लड़का कवि है। शादी हो गई, दुल्हन घर आ गई। कवि महोदय ने कमरे में सजी-संवरी बैठी दुल्हन का घूँघट उठाया, बरबस ही उस स्वप्न सुन्दरी की प्रशंषा में दो पंक्तियां निकल गईं।
‘‘बहुत प्यारी कविता है यह’’, लजाती, शरमाती दुल्हन ने पंक्तियों की प्रशंषा कर दी। उस बेचारी को क्या मालूम था कि ऐसा करके वह कविता रूपी बारूद के ढेर में आग लगा रही है। अपनी कविता की प्रशंषा सुन कवि महोदय अभिभूत हो गये और लगे धड़ा-धड़ एक के बाद एक कवितायें सुनाने। अब यह तो पता नहीं कि उनकी महबूबा ने कितनी देर तक इस सुनामी को सहन किया। मगर यह मालूम है कि दूसरे दिन उनके घर वालों ने उन्हें संजे-संवरे पलंग पर अकेले बैठ कविता पाठ करते पाया, कमरे का दरवाजा खुला पड़ा था, उनकी महबूबा नदारद थी। 
इस घटना से बेचारे कवि महोदय बेहद दुःखी हुये। लेकिन शहर के कुछ बुद्धिजीवियों ने उन्हें समझाया कि अब तो आप की कवितायें और भी बेहतर होंगी, क्यों कि जब तक जिंदगी में दर्द न हो तब तक आवाज और रचना में मजा नहीं आता। 
खैर कुछ भी हो लेकिन यह सच है कि राष्ट्र की इन कवि रूपी महाशक्तियों का सदुपयोग किया जा सकता है। मैं आज ही भारत सरकार को पत्र लिखकर सुझाव दूँगा कि पाकिस्तानी आतंकवादियों से निपटने का बड़ा ही आसान सा उपाय है कि देश के सारे कवियों को सीमा पर भेज दिया जाये। फिर देखें कैसे निपटते हैं आतंकवादी इन महाशक्तियों से।
              वैसे अगर आपका भी कभी इस कवि रूपी से प्राणी से सामना हुया हो तो टिप्पणी करके बतायें।

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

सावधान ! दुनिया के सबसे खतरनाक प्राणी से)

प्रिय मित्रों, आज मैं आपको इस दुनिया के सबसे खतरनाक प्राणी से परिचित करने जा रहा हूँ. वैसे तो इन्शान ने सभी प्राणियों को अपने बस में कर रखा है, मगर इस प्राणी ने इन्शान को अपने बस में कर रखा है. यह प्राणी दुनिया के अधिकतर घरों में पाया जाता है. और "पत्नी" के नाम से जाना जाता है. प्राचीन काळ में इसे "अबला" नाम से जाना जाता था. लेकिन वर्तमान में "अ" हट चुका है, और अब जो बचा है ................वह किसी भी भले मानुष की रूह कंपा देने के लिया काफी है.
     शादी से पूर्व यह प्राणी कन्या या लड़की के नाम से जाना जाता है. और हमारे अविवाहित नवयुवक भाइयों को विशेष रूप से प्रिय होता है. कुछ भाई नासमझी में इसे अपने घर में निवास  करने का आमंत्रण (वर्तमान समय में हमारे अंग्रेजीदां भाई इसे "प्रपोज"  करना कहते हैं) दे देतें हैं. और कभी-कभी जिनकी "शनि की साढ़े साती" चल रही होती है, उनका यह आमंत्रण स्वीकार भी कर लिया जाता है. और कभी-कभी ऐसा भी होता ही की इस प्राणी को घर में लाने के लिए कई लोग मिलकर जोर लागतें है. इस घटना (दुर्घटना) को जिसे "अरेंज मैरेज"  कहतें हैं. दरअसल उनमें शामिल लोग जो स्वयम इस प्राणी के साथ रहने के आदि होते हैं, उन्हें यह बर्दास्त नहीं होता की कोई नवयुवक बिना किसी भय के अपन जीवन व्यतीत करे. अथः वह तन-मन-धन से "पत्नी" नाम के इस प्राणी की जनसंख्या बढाने में अपना योगदान प्रदान करते हैं.
 यह प्राणी देखने में सुन्दर होता है और दुनिया के सभी भागों में जहाँ भी इंशानों की बस्ती है वहां पाया जाता है. बल प्राणी की निम्न विशेसतायें हैं :-
१- यह प्राणी अन्य लोंगो को (जिससे शादी हुई है, उसके अलावा) शादी के उपरांत भी प्यारा ही लगता है, शिर्फ़ "पति" नामक ओहदे से सम्मानित पुरुष को इसके वास्तविक स्वरूप के दर्शन होते हैं.
२- यह प्राणी अन्य लोंगों को ज्यादा परेशान नहीं करना सिर्फ एक ही व्यक्ति पर आपने प्रभाव का इस्तेमाल करता हैं. जिसे समाज में "पति" के नाम से जाना जाता है.
३- हमरे देश की सरकार लोंगो को "अभियक्ति की स्वतंत्रता" प्रदान करती है. मगर यह प्राणी "पति"  से उसकः यह मौलिक अधिकार भी छीन लेता है. और इस प्राणी के घर में आते ही "पति" नमक पुरुष किसी सुन्दर कन्या से किसी भी पराकार की अभियक्ति नहीं कर सकता.
४- दुनिया के बाकि सभी प्राणी अपने मालिक की बात मानते हैं., मगर यह एक ऐसा प्राणी है जो अपने मालिक को अपनी बात मानने पर मजबूर कर देता है.
        वैसे तो मुझे भी इस प्राणी को पालने की लिए मजबूर किया जा रहा है...............मगर आप की दुआओं से मुझे अभी तक इस प्राणी से मुक्ति मिले हुई है..............अतःह मैं अभी मौलिक अधिकार "अभियक्ति की स्वतंत्रता" प्रयोग कर रहा हूँ.    
     मुझे लगता है की "पत्नी:" नमक इस प्राणी को पालने की लिए नवयुकों को विशेष प्रकार का प्रशिषण दिया जाना चाइए...........मैं जल्द ही इस तरह का एक ट्रेनिंग शिविर लगाने जा रहा हूँ. जिस भाई को ट्रेनिंग लेनी हो वह तुंरत सम्पर्क करे. .................

शनिवार, 5 मार्च 2011

रोगों को दूर करता है गुड़


        गुड़ से सभी परिचित हैं। किसी जमाने में मिठास का एकमात्र साधन गुड़ ही था। जबसे चीनी का आविष्कार हुआ, हम गुड़ के महत्व को भूलते जा रहे हैं। जबकि गुड़ अनेकों रोगों की औषधि भी है। आज भी विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थों में गुड़ का प्रयोग किया जाता है। सर्दियों में लोग गुड़ की चाय पीते हैं क्यों कि इस मौसम में गुड़ की चाय पीना काफी लाभदायक होता है। पूजा-अर्चना हवन आदि धार्मिक कार्यों में भी गुड़ का प्रयोग किया जाता है। कड़ी शारीरिक मेहनत करने वालों के लिये गुड़ एक अत्युत्तम आहार है। गुड़ के सेवन करने से थकावट दूर होती है, शरीर में स्फूर्ति आती है। गुड़ अपने विभिन्न चिकित्सकीय गुणों के कारण आज भी अपनी उपयोगिता को बरकरार रखे हुये है, आइये देखते हैं कि गुड़ किन-किन रोगों में लाभदायक है:-
  • एक वर्ष पुराना गुड़ रूचिवर्धक, अग्निवर्धक, लघु एवं वात पित्त नाशक होता है। ज्वर का नाश करने वाला एवं हृदय को बल देने वाला होता है।
  • गुड़ का सेवन करने से स्वास्थ्य उत्तम होता है। कड़ी मेहनत करने वाले व्यक्ति को थकान मिटाने के लिये गुड़ का शर्बत पीना चाहिये।
  • गुड़ में पोटैशियम होने के कारण यह हृदय रोगियों के लिये लाभकारी होता है, एवं कैल्शियम होने के कारण बच्चों के विकास में सहायक सिद्ध होता है।
  • नया गुड़ हल्का खारा, वीर्यवर्धक, बात कफ नाशक होता है मगर यह पित्त एवं रक्त के रोगियों के लिये हानिकारक होता है।
  • गुड़ को गुनगुन पानी में घोलकर उसमें शुद्ध घी की दो बूंदें डालकर सेवन करने से पेट के कृमि बाहर निकल जाते हैं। पेट साफ हो जाता है।
  • कृमि नाशक दवा लेने से पहले गुड़ का सेवन करने से कृमि मृत होकर मलद्वार से बाहर हो जाते हैं।
  • पुराने सूखे गुड़ को महीन पीसकर उसमें सोंठ को मिलाकर सूंघने से प्रमेह में लाभ होता है।
  • नीम की छाल को पानी में उबाल लें जब आठवां हिस्सा शेष बचे तो उसमें गुड़ मिलाकर रात में सेवन करने से मल के साथ कृमि बाहर निकल जाते हैं।
  • 20 ग्राम गुड़ एवं 10 ग्राम आँवला का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से प्रमेह में लाभ होता है।
  • पुराने गुड़ का लड्डू बनाकर खाने से दुर्बलता दूर होती है, स्त्रियों में गर्भाशय की सफाई होकर नयी स्फूर्ति पैदा होती है।
  • गुड़ को तिल के क्वाथ में मिलाकर सेवन करने से बंद मासिक स्त्राव पुनः प्रारम्भ हो जाता है।
  • आधे सिर का दर्द होने पर 10 ग्राम गुड़ 5 ग्राम देशी घी में मिलाकर सूर्योदय से पहले एवं बाद में सेवन करने से दर्द में आराम मिलता है।
  • एक-एक दिन का गैप देकर आने वाले ज्वर में गुड़ और फिटकरी का चूर्ण मिलाकर छोटी गोलियां बनाकर खाने से पुराने से पुराना ज्वर भी ठीक हो जाता है। यह नुस्खा 95 प्रतिशत कामयाब है।
  • गुड़ में बेल का गूदा मिलाकर सेवन करने से अतिसार में लाभ होता है।
  • गुड़ एवं सरसों का तेल बराबर मात्रा में मिलाकर सेवन करने से श्वास एवं दमा में लाभ होता है।
  • गुड़ को गुनगुने दूध में मिलाकर दिन में दो बार पीने से मूत्र खुल कर आता है।
  • खाना खाने के बाद थोड़े से गुड़ का सेवन करने से खाना ठीक से पचता है।
  • गुड़ में हरड़ के चूर्ण को मिलाकर अग्नि प्रदीप्त होती है, जिससे पाचन शक्ति बढ़ती है, और भूख ठीक से लगती है।
  • गुड़ में अजमायन मिलाकर शल्य पट्टी बाँध देने से पांव अथवा किसी अन्य अंग में लगा कांटा, कांच, कंकण आदि बाहर निकल जाते हैं।
  • दो पके हुये केले लेकर इनके गूदे में गुड़, नमक या दही मिलाकर खाने से पेचिश दूर हो जाती है।
  • छोटा बच्चा यदि गलती से तम्बाकू खा ले तो विशाक्तता से बचने के लिये गुड़ अथवा गन्ने का रस बच्चे को पिलायें।


अपने हिन्दी फॉन्ट को आसानी से बदलिये यूनिकोड में


         वर्तमान समय में हिन्दी यूनिकोड का प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है, इसके कई विशेष फायदे भी है जैसे कि यदि आपने परम्परागत हिन्दी फॉन्ट जैसे- कृतिदेव, चाणक्य, आगरा आदि में टाइप की हुई कोई ई मेल किसी को भेजें तो उसे पढ़ने में उस यूजर को निश्चित ही कठिनाई होगी जिसके कम्प्यूटर में यह फॉन्ट इंस्टाल नहीं होगें। इसलिये ज्यादातर इस तरह के ई0मेल अटैचमेन्ट भेजते समय हमें संबंधित फॉन्ट को अटैच करना पड़ता है, और फिर नये यूजर को फॉन्ट इंस्टाल करने की विधि बतानी पड़ती है सो अलग।
इस समस्या के निदान का सबसे अच्छा उपाय है यूनिकोड का प्रयोग लेकिन ऐसे यूजर जो काफी समय से कृतिदेव, चाणक्य जैसे फोन्टो का प्रयोग करते आ रहे हैं, उनके लिये इनमें हिन्दी टाइप करना यूनिकोड की अपेक्षा काफी आसान है। पर इन फॉन्ट में उपरोक्त समस्या तो आती ही है, इसके निदान का सरल उपाय है कि इन फॉन्ट में टाइप किये गये मैटर को यूनिकोड में कन्वर्ट कर लिया जाये।
क्यों कि यूनिकोड फॉन्ट आपके ई0मेल आदि के लिये तो उपयोगी है ही साथ ही ब्लाग पर इस तरह से आप आसानी से फॉन्ट परिवर्तन करके लिख सकते हैं। 
हिन्दी फॉन्ट को यूनिकोड में परिवर्तन करने की जुगाड़ खोजने के लिये मैने गूगल बाबा की शरण ली तो गई लिंक मिले जिनमें से कुछ मैने स्वयं प्रयोग किये और उनका परिणामणाम अच्छा रहा है, इनमें से कुछ लिंक यहाँ प्रस्तुत हैं, आशा है यह आपके काम आयेंगे।






अन्य फॉन्ट परिवर्तकों के लिये इन लिंकों का प्रयोग करें।

  • फॉण्ट को यूनीकोड में बदलिए

4C गांधी । आगरा । अमर । कुंडली । चाणक्य । डीवी अलंकार

सुरेख । योगेश । एचटी चाणक्य । आईटी हिन्दी । कृतिदेव । प्रीति

ऋचा । संस्कृत 99 । शिवाजी । श्रीलिपि । सुचिदेव । युवराज 
  • यूनीकोड को मनचाहे फॉण्ट में बदलिए

आगरा । चाणक्य । डीवी अलंकार । योगेश

एचटी चाणक्य । कृतिदेव । ऋचा । संस्कृत 99




आपको यह जानकारी कैसी लगी] इस बारे में अपनी राय जरूर दें।



गुरुवार, 3 मार्च 2011

दहेज हत्यायें: कितना सच? कितना झूठ?

              ‘‘दहेज न देने के कारण नवविवाहिता की हत्या‘‘ हर्षिता ने समाचार पत्र को खोला तो मोटी हेंडिग में यही समाचार दिख गया, समाचार पढ़कर एवं जली हुई युवती की तस्वीर छपी देखकर हर्षिता सिहर गई। उसके मन में बहू के जलने, छटपटाने और मौत के मुंह में समाने का दृष्य साकार हो उठा। वह सोचने लगी कि कहीं ऐसा भी उसके साथ भी न हो! नहीं-नहीं वह शादी ही नहीं करेगी। उसने मन नही मन सोचा।
               हर्षिता को अक्सर दहेज हत्याओं के कान्ड समाचार पत्रों और टेलीविजन पर दिख जाते, शायद ही कोई ऐसा सप्ताह होता जिसमें दो चार दहेज हत्याओं या दहेज के कारण आत्महत्या के समाचार टी0वी0 या न्यूज पेपर में न आते हों। इन समाचारों ने हर्षिता के मन में शादी के प्रति एक अजीब सा भय या यूँ कि कहें कि नफरत पैदा कर दी है। वह शादी के नाम से ही काँप जाती है।
आज लाखों लड़कियाँ शादी के सुनहरे ख्वाब देखने की बजाय ‘‘शादी’’ शब्द से ही डरतीं हैं, क्यों कि उनके मन में शादी के बाद दहेज को लेकर होने वाली हत्याओं, आत्महत्याओं की घटनाओं ने एक विशेष प्रकार का डर पैदा कर दिया है।
एक हद तो यह सही है कि आज के इस भौतिकतावादी युग में दहेज के प्रति सबका आकर्षण दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है और लोग अपने बेटे की पढ़ाई से लेकर उसकी सर्विस लगने तक का सारा खर्चा दहेज के रूप में वसूल कर लेना चाहते हैं, और मनमाना दहेज न मिलने पर बेचारी निर्दोश बहू को अमानुषिक यातनायें देते हैं, उसे तंग करते हैं, और इस अत्याचार की पराकाष्ठा तो तब होती है जब इन यातनाओं का परिणाम बहू की आत्महत्या या हत्या के रूप में सामने आता है।
विभिन्न समाचार-पत्रों, टी0वी0 चैनलों आदि पर लगभग प्रतिदिन सैकड़ों समाचार दहेज की समस्या के इर्द-गिर्द आते हैं। दहेज की दिनों-दिन बढ़ती घटनाओं को देखकर ऐसा लगता है कि दहेज एक कभी न समाप्त होने वाली समस्या बन चुका है।
लेकिन इस संबंध में एक बात विचार करने लायक है कि जिन मौतों को हम दहेज के कारण हुईं हत्यायें या आत्महत्या मान लेते हैं क्या वह वास्तव में दहेज की बजह से हुई हैं। वे कहाँ तक सही हैं? क्या वह मनगढ़ंत तो नहीं है? शायद ज्यादातर लोग इस बारे में सोचने की कभी जरूरत ही नहीं समझते। बस लड़की की मौत ससुराल में अस्वाभाविक ढंग से हुई नहीं कि लोग इसे दहेज हत्या या दहेज उत्पीड़न के परिणामस्वरूप हुई आत्महत्या मान लेते हैं। और मीडिया के लोग समाचार को रोचक और धमाकेदार बनाने के चक्कर में नमक-मिर्च लगाकर ऐसा समाचार दिखाते हैं कि लोगों की सारी सहानुभूति स्वाभाविक रूप से पीड़ित लड़की और उसके परिवार की तरफ हो जाती है और लड़के वाले चारों ओर से अपराधी साबित हो जाते हैं। ज्यादातर मामलों में पुलिस भी छानबीन करने की ज्यादा तकलीफ न उठाकर सीधे ससुराल पक्ष के लोगों को जेल भेजकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं।
मगर दहेज के कारण होने वाली हत्याओं, आत्महत्याओं के बारे में अगर गहराई में जाकर छानबीन की जाये तो पता चलेगा कि दहेज हत्या के रूप में प्रचारित घटनाओं में आधी से अधिक मात्र दहेज के कारण नहीं होती। सभी मनुष्य क्रूर और दहेज लोभी तो नहीं होते। इस प्रकार की हत्याओं/आत्महत्याओं के पीछे अन्य बहुत से कारण होते हैं, जिन्हें दहेज विरोधी लहर की बजह से अनदेखा कर दिया जाता है।
अगर मामलों की तह में जाया जाये तो देखने में आता है कि इस प्रकार की अधिकांश घटनायें दहेज के कारण न होकर पारिवारिक एवं दाम्पत्य जीवन में आपसी सामन्जस्य न होने के कारण होती हैं। आजकल की आधुनिक विचारों वाली ज्यादातर लड़कियाँ अपने पति के साथ अलग रहने की इच्छुक होतीं हैं और पति के व्यवसाय आदि के कार्य से कहीं बाहर रहने पर वह भी अपने पति के साथ रहने की जिद करतीं हैं, कभी-कभी पति के लिये व्यवसाय में स्थायित्व न होने आदि जैसे अनेक कारणों के चलते अपनी पत्नी को दूसरे शहर में साथ रखना संभन नहीं होता। परिणामस्वरूप सास-ससुर, ननद आदि के साथ रह रही बूह की अक्सर इन सबसे तना-तनी हो जाती है, कभी-कभी यह तना-तनी झगड़े का रूप भी ले लेती है, पास-पड़ोस के लोग इस झगड़े को दहेज के कारण होने वाला झगड़ा ही समझते हैं, ऐसे में यदि किसी प्रकार की घटना हो जाये तो लोग दहेज का मामला ही मान लेते हैं।
आज के युवाओं को उन्मुक्त जीवन पसंद है, युवक-युवतियां एक साथ ही कालेज में पढ़ते, एक ही ऑफिस में कार्य करते हैं। इससे कभी-कभी उनमें प्रेम संबंध भी विकसित हो जाते हैं, और यह संबंध अक्सर इतने गहरे हो जाते हैं कि किन्हीं मजबूरियोंवश अन्यन्त्र शादी हो जाने पर भी लोग अपने इन संबंधों को बरकरार रखना चाहते हैं। ऐसे संबंधों से पति-पत्नी के बीच दरार बन जाती है। आये दिन झगड़े होने लगते हैं। कोई भी पति या पत्नी यह कभी पंसद नहीं करता कि उन दोनों के बीच कोई तीसरा आये, ऐसे संबंधों को लोग किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करते। पर जब दोनों के बीच कोई तीसरा आ जाता है तो रोज-रोज झगड़ा मारपीट होने लगती है और फिर इस रोज-रोज के झगड़े से तंग आकर भावुक होकर लड़की आत्महत्या कर लेती है, समाज तुरन्त दहेज हत्या के रूप में इसे प्रचारित कर देता है।
अक्सर यह भी देखने में आता है कि अपनी लाड़ली की शादी तय करने के चक्कर लड़की वाले लड़के वालों से झूठे वायदों के पुल बांध देते हैं। जबकि उन्हें अच्छी तरह मालूम होता कि बाद में इन सब बादों को पूरा करने मुश्किल ही नहीं असंभव है। पर बेटी की शादी तय करने के चक्कर में वह इस पर ध्यान नहीं देते कि इसका परिणाम क्या होगा? जब नींव ही खोखली है तो इमारत कैसे टिकेगी, चार दिनों बाद धराशायी हो जायेगी। और होता भी यही है ससुराल वाले लड़की को उलाहने देते हैं मगर ध्यान रहे उसे यह उलाहने मारने के लिये कदापि नहीं दिये जाते केवल उसके परिवार को झूठा बताने के लिये ही दिये जाते हैं, और बहुत से समझदार परिवार शांन्त भी हो जाते हैं।
कभी-कभी हमें ऐसा भी देखने को मिलता है कि वर-वूध की पारिवारिक स्थिति में जमीन-आसमान का अन्तर है। वर तो सोने चांदी की दुकान का मालिक है, और वधू के घर में मूंगफली बेची जाती है। अभी भला ऐसी स्थिति में दाम्पत्य जीवन कहां तक निभ सकता है। बात-बात में उनमें झगड़ा होता है, कभी खान-पान को लेकर, कभी फैशन को लेकर तो कभी शिष्टाचार को लेकर। बात-बात पर लड़की को टोका जायेगा जिससे लड़की को यह महसूस होता है कि वह इस घर के लायक नहीं है। वह अन्दर ही अन्दर घुटने लगती और अधिक परेशान होने पर आत्महत्या का रास्ता अपनाती है। लोग समझते हैं कि गरीब माँ-बाप ने दहेज नही दिया इसी कारण बहू को मार डाला गया।
यदि इन घटनाओं पर विचार करें तो निष्कर्ष निकलता है कि इन सब घटनाओं में सबसे महत्वपूर्ण कारण होता है लड़कियों की तुनकमिजाजी। जरा सी बात हुई नहीं कि बेसिरपैर की बांते करने लगीं। जरा-जरा सी बात पर बिगड़ने लगीं। अपनी जिद पूरी न होने पर बिना आगे-पीछे सोचे आत्महत्या कर लेतीं हैं, और कुछ माता-पिता भी सोचते हैं कि क्यों न इस अवसर का लाभ उठाया जाये, और पुलिस में रिर्पोट लिखाकर दहेज में दिया सामान वापस ले लिया जाये, और इसी पैसे से दूसरी लड़की को निपटा दिया जाये।
इन सबके अलावा अन्य कारण भी होते हैं जो लड़की के लिये आत्महत्या का कारण बन जाते हैं। लेकिन एक बात तय है कि अगर लड़कियां जरा सी भी समझदारी से काम लें तो वह निश्चित रूप से अपने आप को ऐसी स्थिति से बचा सकती हैं। जरा-जरा सी बात पर लड़कियों को भावुक नहीं होना चाहिये अगर स्थिति खराब है तो अदालत के दरवाजे जाना चाहिये अगर पति या सास-ससुर ठीक रास्ते न आये ंतो तलाक भी लिया जा सकता है। ध्यान रखें जान तो अनमोल हे, इसे यूँ खोना नहीं है। सुसराल वालों को भी अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। ध्यान रखें आपकी पुत्री भी किसी की बहू है जैसे आप अपनी बहू के साथ करते हैं वैसा ही व्यवहार आपकी पुत्री को भी ससुराल में मिल सकता है। आपको अपनी लोभी प्रवृत्ति को छोड़ना होगा।
ससुराल में होने वाली हत्याओं, आत्महत्यों के संबंध मंे प्रशासन, मीडिया और समाज को अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। मीडिया को मात्र समाचार को चटपटा बनाने और टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में किसी की इज्जत से खिलवाड़ नहीं करना चाहिये। ध्यान रखें ऐसी घटनाओं के पीछे एकमात्र दहेज ही नहीं और भी कारण हो सकते हैं। लड़कियों को भी तुनकमिजाजी छोड़नी होगी। जान अनमोल है आत्महत्या कोई खेल नहीं है।
आज औरतें एक से बढ़कर एक ऊचें पदों पर हैं, जीवन का दूसरा नाम संघर्ष हैं। डरे नहीं संघर्ष करें । ध्यान रखें - हम किसी से कम नहीं, हमसे है जमाना, जमाने से हम नहीं।

मंगलवार, 1 मार्च 2011

पहला कदम


 ब्लोगिग़ की दुनिया में यह मेरा पहला कदम हैं. वैसे तो "Indyaroks " "Ibibo" "Rediffiland" आदि पर एक दो ब्लॉग लिखे हैं. लेकिन पूरी तरह से यह सोच कर की ब्लॉग बनाना है, नही. 
     अपने विचारों को आप सब तक पहचाने के उद्देश्य से यह ब्लॉग बनाया है. विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में तो स्वतंत्र लेखन किया और कर रहा हूँ. पर इन्टरनेट के दुनिया यह मेरा पहला कदम है. आप सबसे मार्गदर्शन की आशा है.