गुरुवार, 3 मार्च 2011

दहेज हत्यायें: कितना सच? कितना झूठ?

              ‘‘दहेज न देने के कारण नवविवाहिता की हत्या‘‘ हर्षिता ने समाचार पत्र को खोला तो मोटी हेंडिग में यही समाचार दिख गया, समाचार पढ़कर एवं जली हुई युवती की तस्वीर छपी देखकर हर्षिता सिहर गई। उसके मन में बहू के जलने, छटपटाने और मौत के मुंह में समाने का दृष्य साकार हो उठा। वह सोचने लगी कि कहीं ऐसा भी उसके साथ भी न हो! नहीं-नहीं वह शादी ही नहीं करेगी। उसने मन नही मन सोचा।
               हर्षिता को अक्सर दहेज हत्याओं के कान्ड समाचार पत्रों और टेलीविजन पर दिख जाते, शायद ही कोई ऐसा सप्ताह होता जिसमें दो चार दहेज हत्याओं या दहेज के कारण आत्महत्या के समाचार टी0वी0 या न्यूज पेपर में न आते हों। इन समाचारों ने हर्षिता के मन में शादी के प्रति एक अजीब सा भय या यूँ कि कहें कि नफरत पैदा कर दी है। वह शादी के नाम से ही काँप जाती है।
आज लाखों लड़कियाँ शादी के सुनहरे ख्वाब देखने की बजाय ‘‘शादी’’ शब्द से ही डरतीं हैं, क्यों कि उनके मन में शादी के बाद दहेज को लेकर होने वाली हत्याओं, आत्महत्याओं की घटनाओं ने एक विशेष प्रकार का डर पैदा कर दिया है।
एक हद तो यह सही है कि आज के इस भौतिकतावादी युग में दहेज के प्रति सबका आकर्षण दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है और लोग अपने बेटे की पढ़ाई से लेकर उसकी सर्विस लगने तक का सारा खर्चा दहेज के रूप में वसूल कर लेना चाहते हैं, और मनमाना दहेज न मिलने पर बेचारी निर्दोश बहू को अमानुषिक यातनायें देते हैं, उसे तंग करते हैं, और इस अत्याचार की पराकाष्ठा तो तब होती है जब इन यातनाओं का परिणाम बहू की आत्महत्या या हत्या के रूप में सामने आता है।
विभिन्न समाचार-पत्रों, टी0वी0 चैनलों आदि पर लगभग प्रतिदिन सैकड़ों समाचार दहेज की समस्या के इर्द-गिर्द आते हैं। दहेज की दिनों-दिन बढ़ती घटनाओं को देखकर ऐसा लगता है कि दहेज एक कभी न समाप्त होने वाली समस्या बन चुका है।
लेकिन इस संबंध में एक बात विचार करने लायक है कि जिन मौतों को हम दहेज के कारण हुईं हत्यायें या आत्महत्या मान लेते हैं क्या वह वास्तव में दहेज की बजह से हुई हैं। वे कहाँ तक सही हैं? क्या वह मनगढ़ंत तो नहीं है? शायद ज्यादातर लोग इस बारे में सोचने की कभी जरूरत ही नहीं समझते। बस लड़की की मौत ससुराल में अस्वाभाविक ढंग से हुई नहीं कि लोग इसे दहेज हत्या या दहेज उत्पीड़न के परिणामस्वरूप हुई आत्महत्या मान लेते हैं। और मीडिया के लोग समाचार को रोचक और धमाकेदार बनाने के चक्कर में नमक-मिर्च लगाकर ऐसा समाचार दिखाते हैं कि लोगों की सारी सहानुभूति स्वाभाविक रूप से पीड़ित लड़की और उसके परिवार की तरफ हो जाती है और लड़के वाले चारों ओर से अपराधी साबित हो जाते हैं। ज्यादातर मामलों में पुलिस भी छानबीन करने की ज्यादा तकलीफ न उठाकर सीधे ससुराल पक्ष के लोगों को जेल भेजकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं।
मगर दहेज के कारण होने वाली हत्याओं, आत्महत्याओं के बारे में अगर गहराई में जाकर छानबीन की जाये तो पता चलेगा कि दहेज हत्या के रूप में प्रचारित घटनाओं में आधी से अधिक मात्र दहेज के कारण नहीं होती। सभी मनुष्य क्रूर और दहेज लोभी तो नहीं होते। इस प्रकार की हत्याओं/आत्महत्याओं के पीछे अन्य बहुत से कारण होते हैं, जिन्हें दहेज विरोधी लहर की बजह से अनदेखा कर दिया जाता है।
अगर मामलों की तह में जाया जाये तो देखने में आता है कि इस प्रकार की अधिकांश घटनायें दहेज के कारण न होकर पारिवारिक एवं दाम्पत्य जीवन में आपसी सामन्जस्य न होने के कारण होती हैं। आजकल की आधुनिक विचारों वाली ज्यादातर लड़कियाँ अपने पति के साथ अलग रहने की इच्छुक होतीं हैं और पति के व्यवसाय आदि के कार्य से कहीं बाहर रहने पर वह भी अपने पति के साथ रहने की जिद करतीं हैं, कभी-कभी पति के लिये व्यवसाय में स्थायित्व न होने आदि जैसे अनेक कारणों के चलते अपनी पत्नी को दूसरे शहर में साथ रखना संभन नहीं होता। परिणामस्वरूप सास-ससुर, ननद आदि के साथ रह रही बूह की अक्सर इन सबसे तना-तनी हो जाती है, कभी-कभी यह तना-तनी झगड़े का रूप भी ले लेती है, पास-पड़ोस के लोग इस झगड़े को दहेज के कारण होने वाला झगड़ा ही समझते हैं, ऐसे में यदि किसी प्रकार की घटना हो जाये तो लोग दहेज का मामला ही मान लेते हैं।
आज के युवाओं को उन्मुक्त जीवन पसंद है, युवक-युवतियां एक साथ ही कालेज में पढ़ते, एक ही ऑफिस में कार्य करते हैं। इससे कभी-कभी उनमें प्रेम संबंध भी विकसित हो जाते हैं, और यह संबंध अक्सर इतने गहरे हो जाते हैं कि किन्हीं मजबूरियोंवश अन्यन्त्र शादी हो जाने पर भी लोग अपने इन संबंधों को बरकरार रखना चाहते हैं। ऐसे संबंधों से पति-पत्नी के बीच दरार बन जाती है। आये दिन झगड़े होने लगते हैं। कोई भी पति या पत्नी यह कभी पंसद नहीं करता कि उन दोनों के बीच कोई तीसरा आये, ऐसे संबंधों को लोग किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करते। पर जब दोनों के बीच कोई तीसरा आ जाता है तो रोज-रोज झगड़ा मारपीट होने लगती है और फिर इस रोज-रोज के झगड़े से तंग आकर भावुक होकर लड़की आत्महत्या कर लेती है, समाज तुरन्त दहेज हत्या के रूप में इसे प्रचारित कर देता है।
अक्सर यह भी देखने में आता है कि अपनी लाड़ली की शादी तय करने के चक्कर लड़की वाले लड़के वालों से झूठे वायदों के पुल बांध देते हैं। जबकि उन्हें अच्छी तरह मालूम होता कि बाद में इन सब बादों को पूरा करने मुश्किल ही नहीं असंभव है। पर बेटी की शादी तय करने के चक्कर में वह इस पर ध्यान नहीं देते कि इसका परिणाम क्या होगा? जब नींव ही खोखली है तो इमारत कैसे टिकेगी, चार दिनों बाद धराशायी हो जायेगी। और होता भी यही है ससुराल वाले लड़की को उलाहने देते हैं मगर ध्यान रहे उसे यह उलाहने मारने के लिये कदापि नहीं दिये जाते केवल उसके परिवार को झूठा बताने के लिये ही दिये जाते हैं, और बहुत से समझदार परिवार शांन्त भी हो जाते हैं।
कभी-कभी हमें ऐसा भी देखने को मिलता है कि वर-वूध की पारिवारिक स्थिति में जमीन-आसमान का अन्तर है। वर तो सोने चांदी की दुकान का मालिक है, और वधू के घर में मूंगफली बेची जाती है। अभी भला ऐसी स्थिति में दाम्पत्य जीवन कहां तक निभ सकता है। बात-बात में उनमें झगड़ा होता है, कभी खान-पान को लेकर, कभी फैशन को लेकर तो कभी शिष्टाचार को लेकर। बात-बात पर लड़की को टोका जायेगा जिससे लड़की को यह महसूस होता है कि वह इस घर के लायक नहीं है। वह अन्दर ही अन्दर घुटने लगती और अधिक परेशान होने पर आत्महत्या का रास्ता अपनाती है। लोग समझते हैं कि गरीब माँ-बाप ने दहेज नही दिया इसी कारण बहू को मार डाला गया।
यदि इन घटनाओं पर विचार करें तो निष्कर्ष निकलता है कि इन सब घटनाओं में सबसे महत्वपूर्ण कारण होता है लड़कियों की तुनकमिजाजी। जरा सी बात हुई नहीं कि बेसिरपैर की बांते करने लगीं। जरा-जरा सी बात पर बिगड़ने लगीं। अपनी जिद पूरी न होने पर बिना आगे-पीछे सोचे आत्महत्या कर लेतीं हैं, और कुछ माता-पिता भी सोचते हैं कि क्यों न इस अवसर का लाभ उठाया जाये, और पुलिस में रिर्पोट लिखाकर दहेज में दिया सामान वापस ले लिया जाये, और इसी पैसे से दूसरी लड़की को निपटा दिया जाये।
इन सबके अलावा अन्य कारण भी होते हैं जो लड़की के लिये आत्महत्या का कारण बन जाते हैं। लेकिन एक बात तय है कि अगर लड़कियां जरा सी भी समझदारी से काम लें तो वह निश्चित रूप से अपने आप को ऐसी स्थिति से बचा सकती हैं। जरा-जरा सी बात पर लड़कियों को भावुक नहीं होना चाहिये अगर स्थिति खराब है तो अदालत के दरवाजे जाना चाहिये अगर पति या सास-ससुर ठीक रास्ते न आये ंतो तलाक भी लिया जा सकता है। ध्यान रखें जान तो अनमोल हे, इसे यूँ खोना नहीं है। सुसराल वालों को भी अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। ध्यान रखें आपकी पुत्री भी किसी की बहू है जैसे आप अपनी बहू के साथ करते हैं वैसा ही व्यवहार आपकी पुत्री को भी ससुराल में मिल सकता है। आपको अपनी लोभी प्रवृत्ति को छोड़ना होगा।
ससुराल में होने वाली हत्याओं, आत्महत्यों के संबंध मंे प्रशासन, मीडिया और समाज को अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। मीडिया को मात्र समाचार को चटपटा बनाने और टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में किसी की इज्जत से खिलवाड़ नहीं करना चाहिये। ध्यान रखें ऐसी घटनाओं के पीछे एकमात्र दहेज ही नहीं और भी कारण हो सकते हैं। लड़कियों को भी तुनकमिजाजी छोड़नी होगी। जान अनमोल है आत्महत्या कोई खेल नहीं है।
आज औरतें एक से बढ़कर एक ऊचें पदों पर हैं, जीवन का दूसरा नाम संघर्ष हैं। डरे नहीं संघर्ष करें । ध्यान रखें - हम किसी से कम नहीं, हमसे है जमाना, जमाने से हम नहीं।