शनिवार, 5 जनवरी 2013

क्या सच में जागा है समाज?


      दिल्ली में हुई इस जघन्य घटना के बाद पूरे देश में उबाल है। लगता है हमारा देश, वह देश जो मुंबई आतंकी हमलों, संसद हमलों, सैकड़ों जघन्य घटनाओं के बाद भी उदासीन रहता है, उसे उस अभागी लड़की ने अपने प्राणों की आहुति देकर झकझोर दिया है, जगा दिया है। मीडिया में चौतरफ़ा आ रही खबरों को देखकर लगता है कि वाकई लोग गंभीर हैं इस तरह के अपराधों को रोकने प्रति और ऐसी घटनाओं के वाहक बनने वालों में ज्यादातर किशोर और हमारे युवा साथी अब जागरुक हो रहे हैं ऐसे अपराधों को रोकने के प्रति। हर हृदय विदारक घटना पर उदासीन और चुप्पी साधे सब कुछ सहने वाला देश अगर जागा, सचमुच जागा तो उस लड़की का बलिदान निरर्थक नहीं जायेगा।
मगर तस्वीर का दूसरा पहलू कुछ और कह रहा है। सच! जो कि हमेशा की तरह अत्यन्त कड़वा है कुछ और है! काश प्रिंटि, आॅनलाइन, इलेक्ट्रानिक मीडिया में दिखाया जा रहा युवाआंे का जोश, समाज का जोश, तस्वीर बदलने की सुगबुगाहट सब कुछ सच होता।
घटना के समय लड़की के साथ रहे उसके दोस्त का कहना है कि जब उन्हें बस से बाहर फेंका गया और वह सड़क पर पड़े थे, उस दौरान वहां से 40 से 50 के बीच में कारें, आॅटो, टैक्सियां, बाइकें आदि गुजरीं उसने उन्हें रोकने की कोशिष भी की, मगर ज्यादातर लोग अनदेखा करते हुये आगे बढ़ गये, कुछ ने गाड़ी धीमी तो की मगर मदद के लिये रोकी नहीं। वहां से उस समय गुजर रहे वाहनों में कुछ कारों, बाइकों पर दिल्ली के तथाकथित आधुनिक युवा भी थे, मगर कोई भी तत्काल मदद के लिये आगे नहीं आया। हां इनमें से कई ऐसे हैं जो अब इंडिया गेट और जंतर-मंतर पर टीवी कैमरों के आगे उस लड़की के लिये इंसाफ मांग रहे हैं। पुलिस की तो बात ही कुछ और है वह तो घटना के पहले भी सो रही थी और बाद में भी। पुलिस की तीन वैन 45 मिनट तक यह तय करने में लग रहीं कि घटना किसके सीमा क्षेत्र की है।
समाचार पत्रों को ध्यान से पढ़ेगें, आस-पास की घटनाआंे को गंभीरता से देखेंगे तो आप भी सोचने पर मजबूर होंगे कि क्या सच में हम ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न होने देने के लिये प्रतिबद्ध हुए है? क्या हमने महिलाओं, युवतियों के प्रति अपनी मानसिकता बदली है? क्या महिलाओं युवतियों ने इस घटना से कुछ सबक लेते हुये स्वयं की रक्षा के प्रति संकल्प लिया है? आइये कुछ बिंदुआंे, घटनाओं, दृष्यांे पर नजर डालते हैं और फिर समझते हैं कि क्या सच में जागा है हमारा समाज??
‘‘कुछ भी हो यार ‘‘माल’’ मस्त था‘‘। 
‘‘अरे आज तो मैंने एक लड़की को गोद में उठाया सबके सामने, उसके पैर में थोड़ी सी चोट थी चलने लायक तो थी पर मैने मौका जाने नहीं दिया, फट से गोद में उठा लिया। देखो तो जरा टीवी पर आ रहा हूं मैं, मजा मिला सो अलग’’। 
‘‘ओये! यह क्या वेश बनाकर चल रही है, ऐसे भूत जैसी चलेगी तो कोई टी.वी. वाला तेरी तरफ भूलकर भी अपना कैमरा नहीं करेगा और लड़के तेरे साथ नारे भी नहीं लगायेंगे, थोड़ा ठीक से चल यार’’।
एक महिला कालेज की पन्द्रह-बीस छात्रायें आधुनिक कपड़ों में एक स्थान पर एकत्रित होकर हंस-हसं कर बतिया रहीं हैं, तभी मीडिया वाले नजर आ जाते हैं। ‘‘दामिनी को न्याय दो, महिलाओं को सम्मान दो’’ नारेबाजी शुरू और अगले ही पल ‘‘भैया न्यूज कितने बजे आयेगी? मेरा नाम लिख लिया न? फोटो ठीक आयी न?
‘‘ममा, मुझे ये ‘‘बहन जी’’ टाइप ड्रेस नहीं पहननी, प्लीज समझा करो न। फ्रैंड्स क्या कहेंगे’’। बेटी को मिनी स्कर्ट पहनने से मना करते-करते पर एक मां बेटी के जिद आगे हार ही गई।
एक सोशल क्लब की बैठक में ‘‘दामिनी’’ (मीडिया द्वारा पीडि़त लड़की को दिया गया नाम) के साथ  हुयी जघन्य घटना पर विरोध प्रदर्शन की तैयारी हो रही है। ‘‘हम सुबह 6 बजे से टाउनहाल से रैली निकालेंगे’’, अरे नहीं 10 बजे निकलातें हैं इतनी सुबह मीडिया कवरेज नहीं मिलेगा’’।
‘‘शर्मा जी! मीडिया वालों को सूचना जरूर दे देना, मीडिया को पता न चला तो सारी मेहनत बर्बाद हो जायेगी।’’
‘‘हमें दामिनी, अपनी बहन दामिनी की मौत का बदला लेना, हमें प्रण करना है कि हम लड़कियों को सम्मान देंगे और अपनी बहन की तरह उनकी रक्षा करेंगे’’ ज्यादा से ज्यादा लाइक और शेयर करें। फेसबुक पर दिल्ली के एक प्रतिष्ठित काॅलेज के एक छात्र द्वारा की गई एक पोस्ट।
‘‘हे स्वीटी! यू आर लुकिंग सो हाॅट! नाइस योर बूब्स!’’ 
उसी छात्र द्वारा अपने ही काॅलेज की छात्रा द्वारा अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर पोस्ट की गई एक फोटो पर दी गई टिप्पणी।
दिल्ली से तीन सौ किलोमीटर दूर एक फर्रुखाबाद नामक शहर में एक कोचिंग संस्था की ओर से दिल्ली घटनाकांड पर विरोध प्रदर्शन की तैयारी हो रही है। सामने रखे समाचार पत्र में उसी शहर की दो प्रमुख खबरें छपीं हैं।
‘‘पांच वर्षीय बच्ची की दुष्कर्म के बाद हत्या, पुलिस ने नहीं लिखी रिर्पोट’’। ’’रेप के बाद महिला को इटावा-बरेली हाइवे पर चलते ट्रक से फेंक चालक फरार’’।
अरे नहीं इन घटनाओं पर प्रदर्शन करने का कोई फायदा नहीं, ऐसी छोटी-मोटी घटनाओं को मीडिया हाईलाइट नहीं करता। सर्दी में रोड पर पदयात्रा करेंगे तो कोचिंग का नाम मीडिया में तो आना चाहिये न। 
जंतर-मंतर पर प्रदर्शन के दौरान महिला सम्मान का नारे वाले युवा राजीव चैक मेट्रो पर एक ग्रुप में खड़े हैं। ‘‘यार वह सेट हुई कि नहीं’’। ‘‘कहां यार! पट ही नहीं रही’’। कुछ जुगाड़ करो यार वर्ना नया साल ऐसे ही जायेगा क्या!!!!
इंडिया गेट पर ‘‘दामिनी’’ को न्याय दिलाकर अपनी मंहगी कार से वापस घर जा रहे तीन रईसजादों को किसी अनजान शहर से आई एक लड़की घबराई हुई सी रास्ते में दिखी। उसे कार में बैठाकर गंतव्य तक छोड़ने का लालच दिया। मगर लड़की ने इनकार कर दिया और पुलिस पिकेट की तरफ रास्ता पूछने के लिये बढ़ गई। 
एक और दामिनी बनने से बच गई।
यह तो कुछ झलकियां हैं। मेरे कहने की आवश्यकता नहीं हैं कि समाज जागा है????? अपने आस-पास की घटनाओं को ध्यान से देखिये आपको असली तस्वीर समझ में आ जायेगी।
विचार कीजिये जरा -ः
      दामिनी काण्ड बार पूरा देश महिलाआंे की सुरक्षा की गुहार कर रहा है, सब महिलाओं को बहन-बेटियों की तरह सुरक्षा देने का दम भर रहे हैं। 
मगर उस तारीख से आज की तारीख मैंने एक भी अखबार, किसी भी दिन का अखबार ऐसा नहीं देखा जिसमें कम से कम दो तीन बलात्कार, छेड़-छाड़ की घटनायें न छपीं हों।
सच में जागा है समाज?????????????????????