सोमवार, 31 दिसंबर 2012

नव वर्ष की शुभकामनाएं


प्रियजन, परिजन, मित्रजन पायें नव उल्लास,
मिले सभी को नव ख़ुशी, नित्य नया विश्वाष.
मन में हो नव कल्पना, तन में नव उत्कर्ष 
सपरिवार हो आपको मंगलमय नववर्ष 

आशीष मिश्र
भारतीय बाल विकास संस्थान,फर्रुखाबाद, 
उत्तर प्रदेश (भारत)

शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

गीत





कभी रोने लगे,
कभी हंसने लगे।
सोये ख्वाब क्यों, 
आज जगने लगे।
कहीं प्यार तो नहीं हो गया है हमें।।..............................

दूर से, दूर से गुनगुनाता कोई,

लग रहा जैसे मुझको बुलाता कोई।
क्या हुआ, कब हुआ,
हम समझ पाये ना।
खोये-खोये से हम क्यों रहने लगे।। कहीं ................

हमको महलों के सुख अब हैं भाते नहीं,
जाने क्यों हम कहीं चैन पाते नहीं।
चुप रहें क्या कहें
और बतलायें क्या
कल्पनाओं की धारा में बहने लगे।। कहीं ...........................................

आइने में भी चेहरा न खुद का दिखे,
देखता हूं जिधर रूप उनका दिखे।
क्या इधर क्या उधर 
हर तरफ वो ही वो।
पास ही हमको हर पल वो लगने लगे।। कहीं .............................

जाते हैं हम कहीं और पहुंचते कहीं,
रूकना चाहें कहीं और रूकते कहीं।
कुछ हुआ, कब हुआ
किससे पूछें ये हम।
जाने हम ये क्या-क्या करने लगे।। कहीं ...........................................

सोमवार, 27 अगस्त 2012

सभी रोगों की अचूक औषधि है तुलसी


भगवान कृष्ण को अति प्रिय मानी जाने वाली तुलसी लगभग सभी हिन्दुओं के आंगनों में देखी जा सकती है। तुलसी मुख्यतया दो प्रकार की होती है, श्यामा एवं रामा। श्यामा तुलसी के पत्ते हल्का काला रंग लिये हुये होते हैं, जबकि रामा तुलसी के पत्ते हरे एवं भूरे रंग के होते हैं।
तुलसी के बारे में एक कथा प्रचलित है कि एक बार जब युधिष्ठर राजसूय यज्ञ कर रहे थे उस समय सभी राजा जीते जा चुके थे पर जरासंध को जीतना मुश्किल हो रहा था क्योंकि उसकी पत्नी वृंदा पतिव्रता थी उसके पतिव्रत धर्म के कारण वह मारे नहीं मरता था। वृंदा का पतिवृत धर्म नष्ट करने के लिये कृष्ण ने कपट से जरासंध का रूप धारण कर लिया और वृंदा का पतिवृत धर्म नष्ट कर दिया। जब वृंदा को अपने साथ हुये इस धोखे का पता चला तो उसने कृष्ण को श्राप दिया कि तुम पत्थर हो जाओ जिससे कृष्ण सालिगराम बन गये। उसी समय वहां लक्ष्मी जी आ गईं उन्होंने गुस्से में वृंदा को श्राप दिया कि तुम जड़ हो जाओ जिससे वृंदा तुलसी रूपी पौधा बन गई। झगड़ा बढ़ता देखकर भगवान कृष्ण ने अपनी गलती स्वीकार करते हुये बीच-बिचाव कराया और वृंदा को वरदान दिया कि आज से मैं किसी भी पूजन में कोई भी भोग बिना तुलसी के स्वीकार नहीं करूंगा। तभी से भगवान के पूजन में तुलसी दल का प्रयोग अनिवार्य हो गया।
यह तो हुई पौराणिक बात। इस संबंध में विज्ञानियों का कहना है कि तुलसी को धर्म को जोड़ने का उद्देश्य इस छोटे से पौधे को लुप्त होने से बचाना था, भारत के प्राचीन ऋषि मुनि काफी विद्वान थे उन्हें मालूम था कि तुलसी असंख्य गुणों वाला पौधा है अतः इसे धर्म से जोड़ दिया तो यह अन्य वनस्पतियों की तरह विलुप्त नहीं होगा। सच भी है यदि इस पौधे को धर्म से न जोड़ा गया होता तो शायद तमाम अन्य वनस्पतियों की तरह यह भी लुप्त हो गया होता अथवा लुप्त होने की कगार पर होता।
तुलसी की जड़, पत्ती, तना, बीज (मंजरी) आदि हर भाग किसी न किसी रोग की औषधि है, आइये एक नजर डालते हैं तुलसी के औषधीय गुणों पर:-
1. प्रातः खाली पेट 2-3 चम्मच तुलसी के रस का सेवन किया जाये तो शारीरिक बल एवं स्मरण शक्ति में वृद्धि के साथ-साथ व्यक्तित्व भी प्रभावशाली बनता है।
2. शरीर के बजन को नियंत्रित करने हेतु भी तुलसी गुणकारी है, इसके नियमित सेवन से भारी व्यक्ति का बजन घटता है एवं दुबले का बढ़ता है।
3. यदि तुलसी की पत्तियों को काली मिर्च के साथ सेवन किया जाये तो मलेरिया एवं मियादी बुखार में आराम मिलता है।
4. चाय बनाते समय कुछ पत्ती तुलसी की डाल दी जाये ंतो सर्दी बुखार एवं मांस पेशियों के दर्द में राहत मिलती है।
5. तुलसी के रस में खड़ी शक्कर मिला कर पीने से सीने के दर्द एवं खांसी में राहत मिलती है।
6. दूषित पानी में तुलसी की कुछ पत्तियां डालने से पानी शुद्ध हो जाता है।
7. पेट में दर्द होने पर तुलसी रस और अदरक रस को समान मात्रा में लेकर दिन भर में तीन चार बार पीने से दर्द का नाश होता है।
8. 10 ग्राम तुलसी के साथ 5 ग्राम शहद एवं 5 ग्राम पिसी काली मिर्च का सेवन किया जाये तो पाचन शक्ति बढ़ती है।
9. चर-पांच भुने हुये लौंग के साथ तुलसी की पत्ती चूसने से सभी प्रकार की खांसी से राहत मिलती है। 
10. तुलसी की पत्तियां चबाने से मुंह से आने वाली दुर्गंध समाप्त होती है।
11. तुलसी के ताजे पत्तों को गर्मकर नमक के साथ खाने से बंद गला खुल जाता है।
12. तुलसी की पत्तियां प्रत्येक सुबह पानी के साथ पीसकर लगाने से एक्जिमा एवं खुजली से राहत मिलती है।
13. तुलसी रस की गरम बंूदें कान में डालने से कान के दर्द में राहत मिलती है।
14. मुंहासों पर तुलसी का लेप करने से मुंहासे समाप्त होते हैं।
15. तुलसी के ताजे रस का सेवन उल्टी को रोकने में काफी कारगर है।

             इस प्रकार इस नन्हे से पौधे का प्रत्येक भाग अत्यंत गुणकारी है।

शनिवार, 18 अगस्त 2012

स्वतंत्रता के मायने

रमजान के महीने का कुरान में पाक माना गया है, इस्लाम धर्म में अच्छा इन्सान बनने के लिए पहले मुसलमान बनना आवश्यक है और मुसलमान बनने के लिए बुनियादी पांच कर्तव्यों :- फराईज़द् का अमल में लाना आवश्यक है। यदि कोई व्यक्ति निम्नलिखित पांच कर्तव्यों में से किसी एक को भी ना माने तो वह मुसलमान नहीं हो सकता :-
ये फराईज हैं.
ईमान यानी कलिमा तय्यब जिसमें अल्लाह के परम पूज्य होने का इकरार उसके एक होने का यकीन और मोहम्मद साहब के आखिरी नबी ;दूत होने का यकीन करना शामिल है। इसके अलावा बाकी चार हैं .नमाज़ रोज़ा हज और ज़कात।
इस्लाम के ये पांचों फराईज़ इन्सान को इन्सान से प्रेम सहानुभूति सहायता तथा हमदर्दी की प्रेरणा देते हैं। यदि कोई व्यक्ति मुसलमान होकर इस सब पर अमल न करे तो वह अपने मजहब के लिए झूठा है।
रोज़े को अरबी में सोम कहते हैं जिसका मतलब है रुकना। रोज़ा यानी तमाम बुराइयों से रुकना या परहेज़ करना। ज़बान से गलत या बुरा नहीं बोलना आंख से गलत नहीं देखना कान से गलत नहीं सुनना हाथ.
पैर तथा शरीर के अन्य हिस्सों से कोई नाजायज़ अमल नहीं करना। रोज़े की हालत में किसी व्यक्ति के लिए यह आज्ञा नहीं है कि वह अपनी पत्नी को भी इस नीयत से देखे कि उसके मन में कामवासना जगे। गैर औरत के बारे में तो ऐसा सोचना ही हराम है।
रोज़े में दिन भर भूखा व प्यासा ही रहा जाता है जिससे इन्सान में एक वक्ती कमज़ोरी आ जाती है और वह किसी भी हैवानी काम के विषय में नहीं सोचता शोर नहीं मचाता हाथापाई नहीं करता इत्यादि। इसी तरह यदि किसी जगह लोग किसी की बुराई कर रहे हैं तो रोज़ेदार के लिए ऐसे स्थान पर खड़ा होना मना है।
जब मुसलमान रोज़ा रखता है भूखा.प्यासा रहता है तो उसके हृदय में भूखे व्यक्ति के लिए हमदर्दी पैदा होती है।
रमज़ान के माह में मुसलमान के हर नेक अमल यानी पुण्य के कामों का सबाव 70 गुना बढ़ा दिया जाता है। 70 गुना अरबी में मुहावरा है जिसका मतलब होता है बेशुमार। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति अपने पुण्य के कामों में अधिक से अधिक हिस्सा लेता है।
 रोजा  झूठ हिंसा बुराई रिश्वत तथा अन्य तमाम गलत कामों से बचने की प्रेरणा देता है। इसकी मश्क यानी ;अभ्यास पूरे एक महीना कराया जाता है ताकि इंसान पूरे साल तमाम बुराइयों से बचे और इंसान से हमदर्दी का भाव रखे।
ते यह तो हैं कुरान के अनुसार मुसलमानों की परिभाषा फिर उपद्रव करने वाले कौन हैं, दंगा करने, गाडि़यों में तोड़-फोड़ करने, मारपीट करने, दुकाने लूटने वाले कौन हैं? दरअसल दंगाई न हिंदू होते हैं न मुसलमान दंगाई सिर्फ और सिर्फ दंगाई होते हैं। उनका मकसद् समाजिक सौहार्द को बिगाड़ना और अपना उल्लू सीधा करना होता है। दुकानों में लूट-पाट करते वक्त, महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करते वक्त उनका इरादा इस्लाम का भला करना नहीं वरन मौके का फायदा उठाना होता है।
हां हमारी सरकार (चाहे वह केन्द्र की हो राज्य की) को जरूर दंगाइयों के रूप में धर्म की व्याख्या करना बहुत अच्छी तरह आता है, सरकार के लिये पाक कुरआन के अनुसार ऊपर दिये गये गुणों वाला मुसलमान नहीं है न ही वह मुसलमानों का नुमाइंदा है, सरकार को यह दंगाई ही मुसलमानों के सच्चे नुमाइंदे दिखायी देते हैं और उसको लगता है कि यदि इनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही की तो उसका वोट बैंक गड़बड़ा जायेगा। समझ में नहीं आता कि सरकार दंगाइयों के ऊपर सख्त कार्यवाही करते वक्त उन्हें धर्म के चश्मे से क्यों देखती है और जब कभी-कभी दूसरे समुदाय के ओर से भी प्रतिक्रिया होती है तो तमाम राजनैतिक दल, तथाकथित मानवाधिकार समर्थक संगठन आसमान सर पर उठा लेते हैं और जब यह उपद्रवी, दंगाई (सरकारी चश्मे से देखने पर मुसलमान) उपद्रव करते हैं तो इनके खिलाफ सख्त कार्यवाही क्यों नहीं की जाती? अगर एक दो शहरों में इस तरह की हरकत करने वालों पर सख्त कार्यवाही हो तो दंगे की आग एक-एक कर दूसरे शहरों को भी अपनी चपेट में क्यों ले? क्यों नहीं इस पर प्रभावी तरीके से रोक लगाई जाती है। डर है कहीं वोट बैंक न खिसक जाये!!! मुस्लिमों पर सरकार ने कार्यवाही कर दी!!!!!!!!!!!!!!! क्यों नहीं समझा जाता कि यह सिर्फ उपद्रवी है और एक सच्चे मुसलमान को इनके प्रति हमदर्दी भी हीं होगी न ही होनी चाहिये और जिन्हें है वह किसी दंगाई से कम नहीं है।
हमारे देश में स्वतंत्रता का मतलब क्या है? जब चाहो, जहां चाहो लूटपाट शुरू कर दो, जहां चाहो सार्वजनिक और निजी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाओ। आखिर लखनऊ के पार्क में तथाकथित मुसलमानों ने जिन महिलाओं के कपड़े फाड़े उनका क्या कसूर था? जिन निर्दोश दुकानदारों की रोजी-रोटी छीनी उनका क्या कसूर था? लेकिन हमारी सरकार है कि उसके लिये यह सब आम घटनायें हैं। उसके लिये खास तब तक नहीं होता जब तक सड़कों पर खून न बहे।
दुनियां में बहुत से देश हैं जहां सभी धर्मों के लोग रहते हैं? मगर क्या किसी देश में किसी धर्म विशेष के लिये ‘‘पर्सनल लाॅ’’ का प्रावधान है???? यह हमारा देश ही है? क्यों ? क्योंकि हमारे देश के राजनैताओं के लिये देशहित से अधिक स्वयं का हित, सत्ता का सुख महत्व रखता है। उनके लिये इसके कोई मायने नहीं कि देश का क्या होगा? उनके लिये यह मायने है कि कहीं हमारी कुर्सी न चली जाये। क्यों नहीं देश में समान नागरिक संहिता लागू की जाती? और अगर धर्म के आधार पर ’’पर्सनल लाॅ’’ की इजाजत है तो बाकी धर्मों के भी पर्सनल लाॅ हो सकते हैं। फिर देश का कानून!!! खूंटी पर टाग दिया जाये ना!!! क्यों कि हर धर्म का अपना अलग कानून होगा। अदालतों में हर धर्म के जजों की नियुक्ति की जाये। बार कौसिंल, वकालत बंद कर दी जाये। मुस्जिदों, मंदिरों, गिरजाघरों में तैयार की जाये ‘‘पर्सनल लाॅ’’ के एडवोकेट।
कितना हास्यापद है इस देश का कानून और इस देश के राजनैतिक दलों का आचरण। शायद इनके लिये स्वतंत्रता के मायने यहीं हैं कि जनता को मरने दो अपनी कुर्सी सुरक्षित रखो।

मंगलवार, 14 अगस्त 2012

अपहरण


‘‘चोरी करो मगर डकैती तो मत करो, अपहरण करो तो करो मगर हत्यायें तो मत करो’’ एक माननीय मंत्री जी के भाषण को हम सभी दोस्त बड़े गौर से एक समाचार चैनल पर सुन रहे। आखिर सभी बेराजगार जो हैं और रोजगार प्राप्त करने के लिये जी तोड़ कोशिष और इंडिया मार्का जुगाड़ फिट करने के बाबजूद कोई आशा की किरण नजर नहीं आती, परिणामस्वरूप सारा समय समाचार सुनने, रोजगार समाचार देखने और नये-नये आइडिया सोचने में ही बीतता है।
मंत्री जी के भाषण ने हमारे एक साथी के मन में जबरदस्त आइडिया सुझाया, ‘‘एक आइडिया है यार’’ चहक कर उसने कहा, कहने का स्टाइल और चेहरे की चमक बता रही थी कि आइडिया जबरदस्त ही होगा।
‘‘अब कौन सा आइडिया है?’’ मैने पूछा।
‘‘देख यार नौकरी मिलती नहीं, और जीने के लिये पैसा तो चाहिये ही सो कुछ करना पड़ेगा ना, और वैसे भी हमारी पुलिस को बिना कुछ खास करे ही पैसे मिलते हीं हैं इसलिये वह कुछ करती नहीं। देखो बैंक तक लुट रहे हैं पर पुलिस कभी किसी बेचारे को पकड़ने की जहमत नहीं उठाती। तो क्यों न हम भी कुछ काम करें‘‘ हमारे साथी ने कहा।
‘‘यार साफ-साफ बोल न कहना क्या चाहता है?’’
‘‘देख हम लोग मिलकर एक ‘‘अपहरण इंडस्ट्री’’ की स्थापना करते हैं, और मंत्री ने तो कहा ही है कि अपहरण कर सकते हो बस हत्या मत करो’’।
‘‘हां यार, आइडिया तो अच्छा है, वैसे भी आजकल शहर में अमीरों की तादात बढ़ रही है, साल में पांच-छह ‘‘केस’’ भी मिल गये तो जिंदगी बिंदास कटेगी’’ हमारे एक और साथी ने भी समर्थन किया।
मुझे भी लगा बात में दम हैं, सो अपहरण इंडस्ट्री के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पास कर दिया गया। बस अब खोज थी तो हमारे पहले अतिथि की।
काफी सोच-विचार के बाद मुझे याद आया कि हमारे शहर के बिरजू सेठ का इकलौता लड़का बंटी ही हमारे लिये सबसे सरल और फायदेमंद शिकार हो सकता है। बिरजू सेठ का लड़का अपनी बैट्री से चलने वाली बाइक से रोज स्कूल जाता था। मैं तो उसे अच्छे से जानता था मगर हमारे साथी उसे नहीं पहचानते थे, अतः मैने उन्हें उसकी बैट्री वाली साइकिल का पूरा विवरण देकर समझा दिया। हमने अपने दिमाग के घोड़ों के साथ गधों को भी दौड़ाया और इस नतीजे पर पहुंचे कि यदि बंटी का अपहरण सफलतापूवर्क होता है तो हमारी अपरहण इंडस्ट्री की धमाकेदार शुरूआत होगी और कम से एक करोड़ की वसूली तो आसानी से हो ही जायेगी।
बस फिर क्या था, हमने आनन-फानन में अपनी योजना अपने वफदार तेज-तर्रार सार्थियों को समझा दी। हमारे साथियों ने अपने प्लान पर तेजी से अमल किया और उसी दिन स्कूल से वापस आते समय बंटी का अपहरण कर लिया। हमने अपने साथियों के माध्यम से बंटी के घर एक ‘‘आडियो केसेट‘‘ में यह संदेश रिकार्ड करके भिजवा दिया कि यदि अपने लड़के को जीवित वापस चाहते हो तो एक करोड़ रूपया एक सप्ताह के अंदर हमारे दिये गये ठिकाने पर पहंुचा दो। हमने अपने ठिकाने का पूरा विवरण और वहां पहुंचने वाले आदमी के बारे में पूरा विवरण भी कैसेट में रिकार्ड करवा दिया था। हमें पूरा विश्वास था कि हमारी योजना के अनुसार अपने इकलौते बेटे को बचाने के लिये बिरजू सेठ हमें बड़ी आसानी से एक करोड़ रुपये दे देगा।
निश्चित तारीख को नियत किये गये ठिकाने पर हमने अपने सबसे विश्वसनीय साथी को भेज दिया। लगभग एक घंटे बाद वह खाली हाथ लौट आया, हां उसके हाथ में एक लिफाफा जरूर था। हमने मन ही मन सोचा कि शायद बिरजू सेठ ने हमें बेयरर चेक से भुगतान किया है।
‘‘भाई वहां बिरजू सेठ तो नहीं आया, कोई आदमी यह लिफाफा दे गया है’’ साथी ने लिफाफा मेरी ओर बढ़ाते हुये कहा।
मैने लिफाफा लेकर खोला तो उसमें एक पत्र निकला, मैने उसे पढ़ना शुरू किया,
‘‘प्रिय भाई,
सदर नमस्कार।
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद, जो आपने मेरे लड़के का अपहरण कर लिया। मगर मुझे शिकायत इस बात की है कि आपने मेरे एक ही लड़के का अपहरण क्यों किया। कृपा करके कम से कम मेरे दो और लड़कों का अपहरण कर ले जायें और हां, और आपने कहा कि मैं लड़का वापस पाने के लिये आपको एक करोड़ रुपये दूं, तो इस बारे में कान-नाक खोलकर सुन लीजिये कि मैं आपको एक करोड़ तो क्या एक कौड़ी भी नहीं दूंगा और हां यदि आपने मेरे लड़के को वापस करने की कोशिष की तो राधे कसम पुलिस में शिकायत जरूर कर दूंगा।
अतः आपकी भलाई इसी में है कि उस लड़के को तो अपने पास रखो ही कम से कम दो लड़कों को और पकड़ ले जाओ, क्यों मैं अपने एक दर्जन लड़कों की इस फौज को खिलाने पिलाने में असमर्थ हूं। एक लड़के को अपने पास रखने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद, कृप्या भूलकर भी उसे वापस भेजने की हिम्मत मत करना वर्ना मैं पुलिस में रिर्पोट कर दूंगा।
आपका विश्वसनीय
   छेनू लाला उर्फ जलेबी वाला  
‘‘अबे गधों किसके लड़के का अपहरण करके लाये हो तुम लोग?’’ पत्र पढ़कर मैं चीखा।
‘‘अरे आपने जिसका बताया था उसीका तो अपहरण किया है हमने, यह देखिये हम तो साइकिल भी साथ लाये थे‘’।
‘‘फिर यह छेनू लाला-जलेबी वाला कौन है?’’
‘‘यह तो हमंे खुद नहीं पता’’।
हम सभी बुरी तरह झंुझला रहे थे, तभी हमारे एक साथी ने कमरे में प्रवेश किया और कहा, ‘‘मर गये यार, उस दिन बिरजू सेठ ने स्कूल से वापस आते समय अपनी साइकिल अपने दोस्त यानी कि छेनू लाला के बेटे को दे दी थी, और उसके बेटे का नाम भी बंटी ही है।‘‘ उसने रहस्योद्घाटन किया।
हमने अपना सर पीट लिया। इधर वह लड़का हमारी नाक में दम किये था। अपने घर जाने के लिये तो उसने एक बार भी नहीं कहा, हां कभी हमसे रसगुल्ले मांगता, कभी जलेबी तो कभी चाॅकलेट। न दो तो बुरी तरह चीख-चीख कर रोने लगता। वह तो हमसे ऐसे जिद करता मानो हम ही उसके बाप हों। अब हम सब के सब परेशान थे। एक तो बेरोजगारी ऊपर से इस मुसीबत का खर्च। दोष तो बेचारे साथियों का भी नहीं था, उन्होंने तो साइकिल की पहचान और लड़के का नाम सब मिला लिया था, पर हमारा नसीब ही खराब था सो सब काम खराब हो गया और जब कैसेट भेजा तो वह भी पता नहीं कैसे छेनू लाला को मिल गया।
खैर! जो हुआ सो हुआ। मगर अब समस्या यह थी कि उस लड़के को वापस करने पर छेनू लाला पुलिस को सूचना देने की धमकी दी थी। इधर उस लड़के को खिलाते-खिलाते हमारी हालत पतली हो रही थी। जितना हम सब मिलकर खाते थो उतना वह अकेले खा जाता था। उससे बुरी तरह परेशान हो हमने उसे उसके बाप के घर  छोड़ आने का निश्चय कर लिया। मगर वह लड़का अपने घर जाने को तैयार ही नहीं था।
जैसे-तैसे एक प्लान सोचा और उससे कहा कि चल बेटा तुझे बाहर घुमाने ले चलते हैं। खुशी-खुशी वह हमारे साथ घूमने के लिये निकल पड़ा। हमने उसके घर के जनदीक पहुंचकर हमने उसे आइसक्रीम दिलवायी, चाॅकलेट भी दिलवाई। वह मस्त होकर आइसक्रीम खाने लगा और हम अच्छा मौका देख उसे वहीं छोड़ सरपट भागने लगे। मगर किस्मत! उसने हमें भागते हुये देख लिया। आइसक्रीम फेंक उसने भी हमारे पीछे भागना प्रारम्भ कर दिया। वह तेजी से अंकल-अंकल चिल्लाता जा रहा था, और भागता जा रहा था। उसे भागते देख हमारी गति स्वतः ही दोगुनी हो गई।
बड़ी मुश्किल से उस लड़के से पीछा छुड़ाकर हम वापस आये। कान पकड़कर बैठकें लगायीं, नाक पकड़कर खींची और इसी के साथ हमारा ‘‘अपहरण इंडस्ट्री’’ का धंधा शुरू होने से पहले ही बंद हो गया। मगर बेरोजगार हैं सो कुछ ना कुछ आइडिया सोचना तो पड़ता ही है, अगर आपके पास कोई आइडिया हो तो जरूर बताना, मगर अक्ल के घोड़े ही दौड़ाना, गधों को कसकर बांध देना ताकि घोड़ों के साथ वह भी न दौड़ पड़ें।

मंगलवार, 13 मार्च 2012

मुर्दों का दर्द


अखबार में खबर पढ़कर जाग गया

जब देखा कि एक मुर्दा चीड़घर से भाग गया

ढ़ूड़कर लाने वाले को ईनाम मिलेगा

यदि बेरोजगार हुआ तो चीड़घर में ही काम मिलेगा

प्हचान कुछ इस प्रकार लिखी थी -

उसका ब्लेक एण्ड व्हाइट

मगर दाड़ी मूंछ रंगीन है

और हेयर स्टाइल बिल्कुल नवीन है

एकदम गठीला बदन है

शरीर पर टेरीकाट का कफन है

दौड़ नहीं सकता एक टांग टूटी है

दिखाई भी कम देता है एक आंख फूटी है

ढूड़कर लाइये आप भी किस्मत आजमाइये

यह सिलसिला शाम तक चला

मगर वह मुर्दा नहीं मिला

अचानक सोचा चलो कब्रिस्तान देख लेते हैं

एक बार फिर, किस्मत का पासा फेंक लेते हैं

टार्च लेकर रात 10 बजे कब्रिस्तान आया

वहां पर रोशनी देखकर सर चकराया

बड़ा आश्चर्यजनक हाल था

सामने सजा सुन्दर पण्डाल था

बड़ी संख्या में मुर्दे विराजमान थे

कुछ मरियाल और कुछ नौजवान थे

छिपकर देखा भाषण चल रहे थे

कुछ मुर्दे आस-पास टहल रहे थे

एक ने मुझे देखा और बोला पत्रकार साहब अन्दर आइये

अपने अखबार में एक-एक बात फोटो सहित निकलवाइये

मैं घबरा रहा था, किन्तु हिम्मत बना रहा था

कागज पेन निकालकर सभा में खो गया

उनका उसी समय भाषण शुरू हो गया

सर्वप्रथम स्व0 अमरलाल जी आये

अपनी बदकिस्मती पर दो आंसू बहाये

बोले हमारा पुत्र कहता है कि पिताजी स्वर्ग में खड़े हैं

किन्तु उस नालायक को क्या पता स्वर्ग में भीड़ है

इसलिये हम वेटिंग लिस्ट में पड़े है

खैर हमारा विषय है कब्रिस्तान में बढ़ती हुई जनसंख्या

और पर्यावरण प्रदूषण -इसके कारण

और मानव द्वारा मुर्दों का शोषण

बड़ी संख्या में जनता मर रही है

हमारे आस-पास की सारी जमीन भर रही है

बम फटा तो हमारी मुसीबत हुई

सैकड़ों यहां भिजवा दिये

धर्म के नाम पर गोलियां चलीं

हजारों यहां पहुंचा दिये

कौन जाने हम मुर्दे कैसे रहते हैं

प्रदूषण और गंदगी कैसे सहते हैं

मैं प्रधानमंत्री जी को एक पत्र पहुंचाउंगा

उन्हें यहां के हालात से अवगत कराउंगा

आखिर हम मुर्दों को भी जीने का हक है

इससे तो अच्छा हमारा नरक है

कहेंगे महोदय कृप्या मरने पर अंकुश लगाइये

अन्यथा कुछ नये कब्रिस्तान बनवाइये

हमें आपसे बहुत बड़ी शिकायत है

हमारे यहां बीमार मुर्दों की बहुतायत है

जो रात भर खंासते खखारते हैं सोने नहीं देते

नहाना तो दूर हाथ तक नहीं धोते

जो बीमारी में आते हैं

हमारे बीच रोग फैलाते हैं

जो साहित्यकार आते हैं

हम सबका दिमाग चाटकर पागल बनाते हैं

आपसे अनुरोध है कि शीघ्र ही इलाज हेतु

एक डाॅक्टर मारकर पहुंचा दें

क्ृप्या हमारे कष्टों पर विचार करे

और हम मुर्दों का उद्धार करें

भविष्य में जो भी मुर्दा भिजवायें बीमार और बूढ़े नहीं

स्वस्थ और नौजवान भिजवायें

अन्यथा हम सब मिलकर

स्वर्ग का बहिस्कार कर नर्क में चलें जायेंगे

और फिर आपके पुरखे नर्कवासी कहलायें।

मैं भाषण सुनकर भाग आया

उस मुर्दे को नहीं खोज पाया

किन्तु यह समाचार आप तक पहुंचा रहा हूं

और अब स्वर्ग से सीधे नर्क में जा रहा हं।