मंगलवार, 11 अक्तूबर 2011

मोती


        मोती! बस यह शब्द कानों में पड़ते ही उस नन्हें से जीव की स्मृति ताजी हो जाती है जो कभी मुझे अपने एक दोस्त की तरह लगता था। उस समय मैं अपने पिताजी के साथ फर्रुखाबाद में रह रहा था, मेरी माँ, दादी और बहन जिला मैनपुरी के अन्तर्गत आने वाले गांव नौनेर में रह रहीं थीं। चूंकि मैं अपनी मां से दूर था, इसलिये मां का प्यार भी पिता से पाता था। उस समय मैं कक्षा चार में पढ़ रहा था, हम इस शहर में किराये के मकान में रहते थे, चूंकि हम दूसरी मंजिल पर रहते थे और छत पर हमारे सिवा और दूसरा कोई नहीं रहता था, अतः पिताजी ऑफिस जाते समय कमरे में ताला डाल देते थे, ताकि मैं कहीं खेलने चला जाऊं तो कमरा खुला न रहे और मैं अक्सर छत पर या बरामदे में बैठा रहता था।
चूंकि उस मकान में एक जामुन का पेड़ था अतः छत पर भी उसकी काफी छाया फैली रहती थी, अतः मैं ज्यादातर उसकी छाया में बैठकर पढ़ा करता। पिताजी मेरे लिये काफी सारी बाल पत्रिकायें ला देते थे, मैं ज्यादातर समय उन्हीं में उलझा रहता, मगर फिर भी कभी-कभी मेरा मन पत्रिकाओं से ऊब जाता था।
एक दिन पिताजी के साथ मैं उनके दोस्त गुप्ता जी के यहां गया। वहीं मुझे दिखा वह नन्हा सा जीव। मुझे लगा यह मेरा ऐसा दोस्त बन सकता है तो मेरे साथ रहकर मेरे अकेलेपन को दूर कर सके। वह एक सफेद चूहा था, गुप्ता जी के यहां दो चूहे पले हुये थे, उन्होंने बताया कि इनको यदि पिंजड़े से बाहर निकाल दो तब भी यह कहीं नहीं जाते। उन चूहों में से एक नाम हीरा था और दूसरे का मोती।
मैने पिताजी को अपने मन की बात बताई कि मैं इन चूहों में से एक को पालना चाहता हूँ। पिताजी पहले तो मना किया मगर मेरे जिद करने पर उन्हांेने मुझे आज्ञा दे दी, बस फिर क्या था मैं मोती नाम का एक सफेद चूहा घर ले आया। उसके लिये मैने एक पिंजरा खरीदा और विशेष रूप से पालतू सफेद चूहों के लिये बाजार में बिकने वाले छोटे-छोटे बिस्किट भी। मोती को यह बिस्किट बहुत पंसद थे।
अब तो मैं जब भी घर पर होता तो मोती को पिंजरे से निकाल कर अपने पास ही रखता और भी बिस्किट के लालच में मेरे पीछे-पीछे पूरी छत पर घूमा करता। जब मैं पढ़ने बैठता तो वह आकर मेरी किताब पर आ बैठता और तक तब न हटता जब तक उसे बिस्किट न मिलें। स्कूल जाते समय मैं मोती को पिंजरे में बंद कर देता था, और मेरे वापस आते ही मोती पिंजरे में चीं-चीं की करके बाहर निकालने को कहता। पिंजरे से बाहर निकलते ही वह मेरे आस-पास उछलकूद मचाना शुरू कर देता।
कभी-कभी ज बवह ज्यादा शरारत करता तो मैं उसे उठाकर अपनी पेंट की जेब में रख लेता और वह भी किसी बेजान वस्तु की तरह चुपचाप जेब में पड़ा रहता। अब पापा भी मोती के लिये मंूगफली, बिस्क्टि आदि अक्सर ले आते थे। सुबह के समय जब मैं सोकर जल्दी न उठता तो पिताजी मोती का पिंजरा खोल देते थे, और पिंजरे से बाहर आते ही मोती मेरे सिर से पैर तक दौड़ लगाना शुरू कर देता, मुझे तेजी से गुदगुदी होती और मजबूरन मुझे उठकर बैठना पड़ता।
एक दिन तो मोती ने हद ही कर दी। उस दिन सुबह से हल्की बारिश हो रही थी। बारिश के डर से मैने पूरा बैग ले जाने की बजाय कुछ कॉपी किताबें ही बैंक में रख लीं और स्कूल के लिये निकल गया। मगर स्कूल पहुंचकर मुझे पता चला कि गणित वाली शीला मैडम आज आ गई हैं, जबकि कल तक वह छुट्टी पर थीं। मुझे तो यही पता था कि मैडम आज नहीं आयेंगीं सो मैं गणित की कॉपी लेकर ही नहीं आया था। शीला मैडम के नाम से ही सभी बच्चे थर-थर कांपते थे। शीला मैडम आज कॉपी चेक करेंगीं और मैं तो कॉपी लाया नहीं, आज तो मेरा बैंड बजना तय है यह सोचकर मैं बेहद परेशान था। 
मैथ के पीरियड में शीला मैडम ने क्लास में प्रवेश किया। अभिवादन स्वीकार करने के बाद उन्होंने सभी छात्रों को बैठने का इशारा किया। मगर स्वयं नहीं बैठीं। हम जानते थे उनकी इस आदत को कि वह आते ही पढ़ाना शुरू कर देतीं हैं। उन्हांेने सभी छात्रों की ओर एक पैनी नजर डाली और गणित की कॉपी निकालने का आदेश दिया। मेरे चेहरे पर घबराहट के निशान साफ दिख रहे थे, शायद इसीलिये मैडम सीधी मेरी डेस्क के पास ही आकर खड़ीं हो गईं। ‘‘कॉपी क्यों नहीं निकालते?’’ मैडम ने कहा।
‘‘भूल आया मैम’’ मैने घिघियाते हुये जबाब दिया।
‘‘भूल आये! इस बैग में क्या भूसा भर रखा है?’’ मैडम ने मेरा बैग झकझोरते हुये उठाया और खोला मगर यह क्या! बैग खोलते ही मैडम एकदम स्पिंग की तरह उछलकर दूर जा खड़ीं हुईं। मेरा बैग उन्हांेने वहीं फेंक दिया।
‘‘क्या हुआ मैडम?’’ सभी छात्रों ने एक स्वर में पूछा।
मैडम के पसीना निकल आया था, गुस्से से तमतमाती हुई बोलीं, ‘‘अभी बतातीं हूं इस नालायक को, बैग में चूहे रखकर लाता है। क्या समझता है तू मैं चूहों से डरती हूँ क्या? चल यह बैग बंद करके उधर रख।‘‘ मैडम ने मुझे आज्ञा दी।
अब मेरी समझ में आया कि मैडक क्यों उछल गईं थीं। दरअसल मेरे बैंग में मोती छुप कर बैठा हुआ था। मुझे मोती की इस शरारत पर बहुत गुस्सा आया। मैडम की आज्ञा मान मैने बैग एक तरफ रख दिया।
‘‘बैंच पर खडे़ हो जाओ और हाथ ऊपर कर लो‘‘ मैडम ने मुझे सजा सुना दी। 
मैं चुपचाप बैंच पर हाथ ऊपर करके खड़ा हो गया। सभी छात्र मुुंह छुपाये हंस रहे थे। मैं नहीं जानता मेरी दशा पर या फिर मैडम के चूहे से डरने के कारण। मैं तो बस इतना जानता हूं कि मोती के चक्कर में मुझे उस दिन पूरे आधा घंटे बैंच पर खडे़ रहना पड़ा।
उस दिन मैं जैसे ही घर आया और बैग रखा मोती भागकर अपने आप पिंजड़े में जाकर बैठ गया, मैने भी आज उसे कुछ खाने को नहीं दिया और न ही मोती ने आज रोज की तरह चीं-चीं की आवाज करके खाना मांगा। शायद उसे भी अपनी भूल का अहसास हो गया था। कुछ ही दूर में मेरा गुस्सा शांत हो गया, मैने मोती को बाहर निकाला, बिस्किट खिलाये और छत पर घूमने के लिये छोड़ दिया।
मोती को मेरे घर आये एक माह हो गया था, अब मेरा समय उसके साथ बड़े मजे से कटता था। कल मम्मी भी गांव से आ गईं थीं क्यों कि पापा की तबियत कुछ गड़बड़ थी। उन्हें ठीक हुये अभी दो-चार दिन ही हुये होंगे कि एक दिन वह स्कूटर से कहीं जा रहे थे कि अचानक स्कूटर के फिसल जाने से उनके पैर में चोट लग गई, चोट ज्यादा नहीं थी सो दो-चार दिन में ठीक हो गई।
मगर न जाने क्या हो रहा था एक सप्ताह बाद ही मम्मी का पर्स कहीं खो गया, जिसमें पूरे पांच हजार रुपये थे। इस घटना के दो-तीन दिन बाद मेरी भी तबियत कुछ गड़बड़ हो गई। मेरा इलाज हुआ और मैं भी ठीक हो गया। मगर मेरी मम्मी ने अपने धार्मिक और अंधविश्वासी स्वभाव के चलते इन सब घटनाओं का कारण मोती को ठहराया और एलान कर दिया कि चूहा घर में पालना शुभ नहीं होता, अतः मोती अब यहां नहीं रहेगा।
अब भला मम्मी को कौन समझाये? मैं पापा से ही रोया गिड़गिड़ाया। पापा ने मम्मी को समझाया कि चूहा पालना अशुभ नहीं होता है, यह सब तो अंधविश्वास है। मगर मम्मी ने अपने आगे पापा की एक न सुनी और आखिर पापा ने भी कह दिया कि फुर्सत मिलते ही मोती को गुप्ता जी के यहां छोड़ आयेंगे।
अब मैं जब भी मोती की चीं-चीं सुनता अनायास ही मेरी आंखों से आंसू आ जाते। यही सोचकर कि न जाने किस दिन पापा मोती को छोड़ आयेंगे। कितनी आत्मीयता हो गई मुझे उस नन्हें से प्राणी से यह मेरे आसूं बताते थे। अब मोती भी न जाने क्या पहले जितनी शरारतें नहीं करता था। शायद उसे भी कुछ अहसास हो गया था। कल रविवार का दिन था, मुझे मालूम था कि कल पापा मोती को छोड़ने जायेंगे। शनिवार होने के कारण आज स्कूल में हाफ डे हो गया था। घर आकर मैने देखा मोती छत पर घूम रहा है, शायद स्कूल जाते वक्त मैं उसे पिंजड़े में बंद करना भूल गया था। मुझे देखकर मोती मेरे पास आ गया मैने उसके बिस्किट खिलाये और कुछ देर उसके साथ खेलता रहा। उसके बाद मैं खाना खाने चला गया, और खाना खाने के बाद छत पर बैठकर होमवर्क करने लगा, मोती वहीं छत पर इधर-उधर उछल-कूद करता रहा।
होम वर्क करने के बाद मैने मोती को बुलाया, मगर मोती नहीं मिला। कमरा, घर और पूरी छत छान मारी मगर मोती कहीं नहीं मिला। पापा के ऑफिस से आते ही मैने उन्हें भी मोती के खोने के बारे में बताया, मेरा रूंआसा चेहरा देखकर पापा के साथ-साथ मम्मी ने भी मोती को काफी देर खोजा। मगर अफसोस! मोती नहीं मिला, कभी नहीं मिला।