मंगलवार, 14 अगस्त 2012

अपहरण


‘‘चोरी करो मगर डकैती तो मत करो, अपहरण करो तो करो मगर हत्यायें तो मत करो’’ एक माननीय मंत्री जी के भाषण को हम सभी दोस्त बड़े गौर से एक समाचार चैनल पर सुन रहे। आखिर सभी बेराजगार जो हैं और रोजगार प्राप्त करने के लिये जी तोड़ कोशिष और इंडिया मार्का जुगाड़ फिट करने के बाबजूद कोई आशा की किरण नजर नहीं आती, परिणामस्वरूप सारा समय समाचार सुनने, रोजगार समाचार देखने और नये-नये आइडिया सोचने में ही बीतता है।
मंत्री जी के भाषण ने हमारे एक साथी के मन में जबरदस्त आइडिया सुझाया, ‘‘एक आइडिया है यार’’ चहक कर उसने कहा, कहने का स्टाइल और चेहरे की चमक बता रही थी कि आइडिया जबरदस्त ही होगा।
‘‘अब कौन सा आइडिया है?’’ मैने पूछा।
‘‘देख यार नौकरी मिलती नहीं, और जीने के लिये पैसा तो चाहिये ही सो कुछ करना पड़ेगा ना, और वैसे भी हमारी पुलिस को बिना कुछ खास करे ही पैसे मिलते हीं हैं इसलिये वह कुछ करती नहीं। देखो बैंक तक लुट रहे हैं पर पुलिस कभी किसी बेचारे को पकड़ने की जहमत नहीं उठाती। तो क्यों न हम भी कुछ काम करें‘‘ हमारे साथी ने कहा।
‘‘यार साफ-साफ बोल न कहना क्या चाहता है?’’
‘‘देख हम लोग मिलकर एक ‘‘अपहरण इंडस्ट्री’’ की स्थापना करते हैं, और मंत्री ने तो कहा ही है कि अपहरण कर सकते हो बस हत्या मत करो’’।
‘‘हां यार, आइडिया तो अच्छा है, वैसे भी आजकल शहर में अमीरों की तादात बढ़ रही है, साल में पांच-छह ‘‘केस’’ भी मिल गये तो जिंदगी बिंदास कटेगी’’ हमारे एक और साथी ने भी समर्थन किया।
मुझे भी लगा बात में दम हैं, सो अपहरण इंडस्ट्री के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पास कर दिया गया। बस अब खोज थी तो हमारे पहले अतिथि की।
काफी सोच-विचार के बाद मुझे याद आया कि हमारे शहर के बिरजू सेठ का इकलौता लड़का बंटी ही हमारे लिये सबसे सरल और फायदेमंद शिकार हो सकता है। बिरजू सेठ का लड़का अपनी बैट्री से चलने वाली बाइक से रोज स्कूल जाता था। मैं तो उसे अच्छे से जानता था मगर हमारे साथी उसे नहीं पहचानते थे, अतः मैने उन्हें उसकी बैट्री वाली साइकिल का पूरा विवरण देकर समझा दिया। हमने अपने दिमाग के घोड़ों के साथ गधों को भी दौड़ाया और इस नतीजे पर पहुंचे कि यदि बंटी का अपहरण सफलतापूवर्क होता है तो हमारी अपरहण इंडस्ट्री की धमाकेदार शुरूआत होगी और कम से एक करोड़ की वसूली तो आसानी से हो ही जायेगी।
बस फिर क्या था, हमने आनन-फानन में अपनी योजना अपने वफदार तेज-तर्रार सार्थियों को समझा दी। हमारे साथियों ने अपने प्लान पर तेजी से अमल किया और उसी दिन स्कूल से वापस आते समय बंटी का अपहरण कर लिया। हमने अपने साथियों के माध्यम से बंटी के घर एक ‘‘आडियो केसेट‘‘ में यह संदेश रिकार्ड करके भिजवा दिया कि यदि अपने लड़के को जीवित वापस चाहते हो तो एक करोड़ रूपया एक सप्ताह के अंदर हमारे दिये गये ठिकाने पर पहंुचा दो। हमने अपने ठिकाने का पूरा विवरण और वहां पहुंचने वाले आदमी के बारे में पूरा विवरण भी कैसेट में रिकार्ड करवा दिया था। हमें पूरा विश्वास था कि हमारी योजना के अनुसार अपने इकलौते बेटे को बचाने के लिये बिरजू सेठ हमें बड़ी आसानी से एक करोड़ रुपये दे देगा।
निश्चित तारीख को नियत किये गये ठिकाने पर हमने अपने सबसे विश्वसनीय साथी को भेज दिया। लगभग एक घंटे बाद वह खाली हाथ लौट आया, हां उसके हाथ में एक लिफाफा जरूर था। हमने मन ही मन सोचा कि शायद बिरजू सेठ ने हमें बेयरर चेक से भुगतान किया है।
‘‘भाई वहां बिरजू सेठ तो नहीं आया, कोई आदमी यह लिफाफा दे गया है’’ साथी ने लिफाफा मेरी ओर बढ़ाते हुये कहा।
मैने लिफाफा लेकर खोला तो उसमें एक पत्र निकला, मैने उसे पढ़ना शुरू किया,
‘‘प्रिय भाई,
सदर नमस्कार।
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद, जो आपने मेरे लड़के का अपहरण कर लिया। मगर मुझे शिकायत इस बात की है कि आपने मेरे एक ही लड़के का अपहरण क्यों किया। कृपा करके कम से कम मेरे दो और लड़कों का अपहरण कर ले जायें और हां, और आपने कहा कि मैं लड़का वापस पाने के लिये आपको एक करोड़ रुपये दूं, तो इस बारे में कान-नाक खोलकर सुन लीजिये कि मैं आपको एक करोड़ तो क्या एक कौड़ी भी नहीं दूंगा और हां यदि आपने मेरे लड़के को वापस करने की कोशिष की तो राधे कसम पुलिस में शिकायत जरूर कर दूंगा।
अतः आपकी भलाई इसी में है कि उस लड़के को तो अपने पास रखो ही कम से कम दो लड़कों को और पकड़ ले जाओ, क्यों मैं अपने एक दर्जन लड़कों की इस फौज को खिलाने पिलाने में असमर्थ हूं। एक लड़के को अपने पास रखने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद, कृप्या भूलकर भी उसे वापस भेजने की हिम्मत मत करना वर्ना मैं पुलिस में रिर्पोट कर दूंगा।
आपका विश्वसनीय
   छेनू लाला उर्फ जलेबी वाला  
‘‘अबे गधों किसके लड़के का अपहरण करके लाये हो तुम लोग?’’ पत्र पढ़कर मैं चीखा।
‘‘अरे आपने जिसका बताया था उसीका तो अपहरण किया है हमने, यह देखिये हम तो साइकिल भी साथ लाये थे‘’।
‘‘फिर यह छेनू लाला-जलेबी वाला कौन है?’’
‘‘यह तो हमंे खुद नहीं पता’’।
हम सभी बुरी तरह झंुझला रहे थे, तभी हमारे एक साथी ने कमरे में प्रवेश किया और कहा, ‘‘मर गये यार, उस दिन बिरजू सेठ ने स्कूल से वापस आते समय अपनी साइकिल अपने दोस्त यानी कि छेनू लाला के बेटे को दे दी थी, और उसके बेटे का नाम भी बंटी ही है।‘‘ उसने रहस्योद्घाटन किया।
हमने अपना सर पीट लिया। इधर वह लड़का हमारी नाक में दम किये था। अपने घर जाने के लिये तो उसने एक बार भी नहीं कहा, हां कभी हमसे रसगुल्ले मांगता, कभी जलेबी तो कभी चाॅकलेट। न दो तो बुरी तरह चीख-चीख कर रोने लगता। वह तो हमसे ऐसे जिद करता मानो हम ही उसके बाप हों। अब हम सब के सब परेशान थे। एक तो बेरोजगारी ऊपर से इस मुसीबत का खर्च। दोष तो बेचारे साथियों का भी नहीं था, उन्होंने तो साइकिल की पहचान और लड़के का नाम सब मिला लिया था, पर हमारा नसीब ही खराब था सो सब काम खराब हो गया और जब कैसेट भेजा तो वह भी पता नहीं कैसे छेनू लाला को मिल गया।
खैर! जो हुआ सो हुआ। मगर अब समस्या यह थी कि उस लड़के को वापस करने पर छेनू लाला पुलिस को सूचना देने की धमकी दी थी। इधर उस लड़के को खिलाते-खिलाते हमारी हालत पतली हो रही थी। जितना हम सब मिलकर खाते थो उतना वह अकेले खा जाता था। उससे बुरी तरह परेशान हो हमने उसे उसके बाप के घर  छोड़ आने का निश्चय कर लिया। मगर वह लड़का अपने घर जाने को तैयार ही नहीं था।
जैसे-तैसे एक प्लान सोचा और उससे कहा कि चल बेटा तुझे बाहर घुमाने ले चलते हैं। खुशी-खुशी वह हमारे साथ घूमने के लिये निकल पड़ा। हमने उसके घर के जनदीक पहुंचकर हमने उसे आइसक्रीम दिलवायी, चाॅकलेट भी दिलवाई। वह मस्त होकर आइसक्रीम खाने लगा और हम अच्छा मौका देख उसे वहीं छोड़ सरपट भागने लगे। मगर किस्मत! उसने हमें भागते हुये देख लिया। आइसक्रीम फेंक उसने भी हमारे पीछे भागना प्रारम्भ कर दिया। वह तेजी से अंकल-अंकल चिल्लाता जा रहा था, और भागता जा रहा था। उसे भागते देख हमारी गति स्वतः ही दोगुनी हो गई।
बड़ी मुश्किल से उस लड़के से पीछा छुड़ाकर हम वापस आये। कान पकड़कर बैठकें लगायीं, नाक पकड़कर खींची और इसी के साथ हमारा ‘‘अपहरण इंडस्ट्री’’ का धंधा शुरू होने से पहले ही बंद हो गया। मगर बेरोजगार हैं सो कुछ ना कुछ आइडिया सोचना तो पड़ता ही है, अगर आपके पास कोई आइडिया हो तो जरूर बताना, मगर अक्ल के घोड़े ही दौड़ाना, गधों को कसकर बांध देना ताकि घोड़ों के साथ वह भी न दौड़ पड़ें।

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